एक हिंदुस्तानी लड़की काम के सिलसिले में कनाडा रुकी हुई है. स्थाई तौर से वहाँ की नागरिक नहीं बन पाई तो उसे कोई काम भी नहीं मिल रहा. कैसे हो गुजर बसर? इधर कनाडा में जैसे-तैसे एक छोटी लड़की की देखभाल का काम मिला तो वह उससे कुछ यूं जुड़ गई जैसे रूह किसी की जुड़ी हो. भावनाओं के ज्वारभाटे से बना यह सम्बन्ध किस करवट ऊंट की तरह बैठेगा वो तो आपको फिल्म देखने पर पता चल ही जाएगा. हां इतना जरूर है कि उस छोटी लड़की की मां उसे छोड़ चल बसी है दूसरी तरफ उसकी देखभाल करने आई उसने भी बचपन में अपने पिता को खो दिया.
इस तरह भावनाओं के स्तर पर एक दूसरे के लगभग बराबर खड़ी इन दोनों के सम्बन्ध आप कहेंगे कि बनेंगे क्यों नहीं? जायज है लेकिन उन सम्बन्धों से रिजल्ट क्या रहा? वह भी आपको जानना चाहिए. इस तरह की फिल्में आपको भीतर भावनात्मक स्तर पर मांजती हैं और इन्हें देखने के बाद आपका दिल जैसे ही किसी ओर के लिए पसीजता है तो मानवीयता के धरातल पर आप कहीं उंचे स्तर तक उठ चुके होते हैं. साथ ही फिल्म आपको इंसानियत के धरातल पर मीडिया, राजनेता और आम लोग कैसे एक साथ मिलकर एक इंसानियत का रूप धारण कर लेते हैं या कैसे मुंह मोड़ लेते हैं, यह दोनों पहलू भी आपको दिखाती है.
राबिया और ओलिविया एक भावनात्मक फिल्म है, जो करीब 1 घंटे 25 मिनट की अवधि की है. यह उस खूबसूरत बंधन को दिखाता है, जो दर्शकों को सही राग अलापता है. शादाब खान की कहानी अच्छी है. उनका निर्देशन कहानी के मर्म को बरकरार रखता है. हां, फिल्म की अपनी खामियां हैं, लेकिन इससे फिल्म की आत्मा नहीं बदलती. फिल्म की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ती है और आपको बांधे रखती है. दोनों के बीच के इमोशनल सीन आपको इमोशनल कर सकते हैं.
नायब खान और हेलेना प्रिंजेन क्लैग के बीच के बंधन को खूबसूरती से चित्रित किया गया है. कुछ सीन आपको इमोशनल कर देंगे. नायब खान, हेलेना प्रिंज़ेन क्लैग और शीबा चड्ढा अपने प्रदर्शन में ठोस हैं. बैकग्राउंड स्कोर कहानी को बरकरार रखता है. दृश्य अच्छा है और गाने फिल्म में स्वाद जोड़ते हैं. राबिया और ओलिविया फिल्म मानसिक स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित है.कहानी आपको नानी और एक बच्चे की प्यारी यात्रा पर ले जाती है, जिसका आप आनंद लेंगे. यदि आप कुछ अद्भुत सामग्री की तलाश कर रहे हैं, तो राबिया और ओलिविया देखें. हम फिल्म को पांच में से तीन स्टार देते हैं.