Shayari on Pollution: कभी दिल्ली की सर्दी बहुत फेमस हुआ करती थी. दिल्ली की सर्दी बॉलीवुड के गानों और फिल्मों में खूब नजर आती थी. लेकिन अब दिल्ली धुआं-धुआं हो गई है. अब ना तो दिल्ली की सर्दी के मायने बचे हैं और ना ही मजा. जला देने वाली गर्मी के बाद जब मौसम खुशगवार होने लगा तो इस धुएं ने दिल्ली के फेफड़े को चीर कर रख दिया. कोरोना के जाने के बाद बेकार हुए मास्क एक बार फिर लोगों के चेहरों पर चिपक गए हैं. अब ना तो चेहरे दिखते हैं और ना ही दिखता है दिल्ली का इंडिया गेट, क्योंकि सब धुएं की चपेट में आ गए हैं. अब हाल इतना बेहाल है कि सिर्फ जीने के लिए इंसान जी रहा है. दिल्ली के साथ ही एनसीआर भी गैस के चेंबर में तब्दील हो चुका है. प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है और इंसान अपनी गलतियों का खामियाजा भुगत रहा है. लेकिन आप जानते हैं शायरी की दुनिया में कई ऐसे शेर हैं जो घुटन का शिकार होते आपके फेफड़ों को चीरकर रख देंगे.
दिल्ली के प्रदूषण पर उर्दू चुनिंदा शेर...
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
क्या हाल पेड़ कटते ही बस्ती का हो गया
नोमान शौक़
पूछ रहे हैं मुझ से पेड़ों के सौदागर
आब-ओ-हवा कैसे ज़हरीली हो जाती है
आलम ख़ुर्शीद
जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हम ने किया
शहर जैसा एक आदम-ख़ोर पैदा कर लिया
फ़रहत एहसास
जंगल जंगल आग लगी है दरिया दरिया पानी है
नगरी नगरी थाह नहीं है लोग बहुत घबराए हैं
जमील अज़ीमाबादी
आग जंगल में लगी है दूर दरियाओं के पार
और कोई शहर में फिरता है घबराया हुआ
ज़फ़र इक़बाल