सनी देओल नहीं बूटा सिंह थे 'Gadar' के असली तारा सिंह, अपने प्यार को वापस लाने गए थे पाकिस्तान, इस प्रेम कहानी का हुआ दर्दनाक अंत

क्या आप जानते हैं कि गदर की कहानी काल्पनिक नहीं बल्कि असल जिंदगी पर आधारित है. यह कहानी ब्रिटिश आर्मी में सेवा देने वाले एक सिख पूर्व सैनिक बूटा सिंह की असल जिंदगी पर बनी है.

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सनी देओल नहीं बूटा सिंह थे 'Gadar' के असली तारा सिंह
नई दिल्ली:

'हिंदुस्तान जिंदाबाद था, जिंदाबाद है, और जिंदाबाद रहेगा!'  जोश से भर देने  वाले इस डायलॉग को सुनकर सबसे पहले जेहन में नाम आता है तारा सिंह और सकीना का. फिल्म गदर में सकीना बनी अमीषा पटेल और तारा सिंह का किरदार निभा रहे सनी देओल की लव स्टोरी रोमियो जूलियट और हीर रांझे जितनी ही लोकप्रिय है.  क्या आप जानते हैं कि फिल्म गदर की कहानी काल्पनिक नहीं बल्कि असल जिंदगी पर आधारित है. यह कहानी ब्रिटिश आर्मी में सेवा देने वाले एक सिख पूर्व सैनिक बूटा सिंह की असल जिंदगी पर बनी है.

बूटा सिंह की कहानी

पंजाब के जालंधर में जन्मे बूटा सिंह ब्रिटिश सेना के पूर्व सिख सैनिक थे, जिन्होंने  सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान लॉर्ड माउंटबेटन की कमान के अंतर्गत बर्मा मोर्चे पर सेवा की थी.  बूटा सिंह की प्रेम कहानी में इतना दम था कि सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि वो अपनी लव स्टोरी की वजह से पाकिस्तान में भी पॉपुलर हैं. 

बूटा सिंह और जैनब की ट्रैजिक लव स्टोरी 

भारत-विभाजन के समय सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बूटा सिंह ने ज़ैनब नाम की एक पाकिस्तानी लड़की को बचाया, जिससे बाद में उन्हें प्यार हो गया. इस जोड़े की तनवीर और दिलवीर नाम की दो बेटियां थीं. हालांकि दोनों की प्रेम कहानी का तब दुखद अंत हो गया जब पार्टीशन के दस साल बाद भारत और पाकिस्तान ने अपने परिवारों से बिछड़ी महिलाओं को वापस भेजने का फैसला किया. ज़ैनब को बड़ी बेटी के साथ पाकिस्तान के एक छोटे से गाँव नूरपुर में वापस भेज दिया गया, जहां उनका परिवार रहता था. बेटी और पत्नी की जुदाई से बूटा सिंह निराश हो गए थे. अपने प्यार को वापस लाना चाहते थे इसके लिए उन्होंने दिल्ली जाकर अधिकारियों से अनुरोध भी किया लेकिन उनके पक्ष में कुछ भी नहीं हुआ.

 इसलिए कुबूल किया इस्लाम धर्म

कोई और रास्ता न होने पर अपनी पत्नी और बेटी को वापस पाने के लिए बूटा सिंह ने इस्लाम धर्म अपनाने और पाकिस्तान जाने का फैसला किया.हालांकि जब  वहां पहुंचे तो देखा कि उनकी दुनिया उलट गई थी.जैनब के परिवार ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. बल्कि जैनब के परिवार वालों ने उनकी पिटाई की और उन्हें पाकिस्तान की अथॉरिटीज को सौंप दिया. ज़ैनब पर अपने परिवार का भी दबाव था. उन्होंने अदालत में बूटा सिंह के साथ वापस जाने से इनकार कर दिया.

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 बूटा सिंह ने इस वजह से की आत्महत्या

इससे आहत होकर बूटा सिंह ने 1957 में अपनी बेटी के साथ पाकिस्तान के शाहदरा स्टेशन के पास आने वाली ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली. हालांकि इस हादसे में बेटी बच गयी. आत्महत्या करने से पहले बूटा सिंह ने एक सुसाइड नोट लिखा. उनकी आखिरी इच्छा थी कि उन्हें बर्की गांव में दफनाया जाए जहां ज़ैनब और उनके माता-पिता विभाजन के बाद फिर से बस गए थे. लाहौर में शव परीक्षण के बाद उनके शव को गांव ले जाया गया लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें मैनी साहिब कब्रिस्तान में दफनाने से इनकार कर दिया.

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 इन फिल्मों में नजर आई बूटा सिंह की कहानी

 बूटा सिंह और जैनब की प्रेम कहानी को कई किताबों और फिल्मों में रूपांतरित किया गया. ग़दर ही नहीं बल्कि 1999 की शहीद ए मोहब्बत बूटा सिंह गुरदास मान और दिव्या दत्ता स्टारर एक पंजाबी फिल्म में भी उनकी रियल लाइफ और ट्रैजिक लव स्टोरी को दिखाया गया था. यहां तक कि वीर जारा की कहानी थी बूटा सिंह की कहानी से काफी हद तक प्रेरित है. 

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