रानी मुखर्जी की फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' सच्ची घटना पर आधारित है. दो बच्चों की कस्टडी के लिए लड़ रहे एक भारतीय कपल की नॉर्वे सरकार के साथ लड़ाई पर आधारित इस घटना को एक दशक से भी ज्यादा समय हो गया है. वर्ष 2011 में नॉर्वे बाल कल्याण सेवा, जिसे बार्नेवर्ने भी कहा जाता है. अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य के बच्चों को ले गई और चाइल्ड सर्विसेज में रखा. अब कपल के संघर्ष और अपने बच्चों के साथ पुनर्मिलन के लिए एक पूरे देश के खिलाफ उनकी लड़ाई को रानी मुखर्जी की फिल्म में दिखाया गया है.
'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' इस साल 17 मार्च को रिलीज होने वाली है. मई 2011 में अनुरूप और सागरिका ने अपने बच्चों तीन वर्षीय अविग्यान और एक वर्षीय बेटी ऐश्वर्या की कस्टडी खो दी थी, जब नॉर्वे के अधिकारियों ने बच्चे को हाथ से दूध पिलाने पर आपत्ति जताते हुए इसे जबरदस्ती खिलाना बताया. उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के पास खेलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. उन पर अपने बच्चों को अनुपयुक्त कपड़े और खिलौने उपलब्ध कराने का भी आरोप लगाया गया था.
नॉर्वे की चाइल्ड प्रोटेक्टिव सर्विस ने पिता के बिस्तर पर भी आपत्ति जताई और जोर देकर कहा कि बच्चे के पास अपना अलग बेड होना चाहिए. दोनों देशों के बीच एक राजनयिक विवाद के बाद नॉर्वे के अधिकारियों ने पिता के भाई को बच्चों की कस्टडी देने का फैसला किया, जिससे वह उन्हें भारत वापस ला सके.
हालांकि, तब तक अनुरूप और सागरिका के बीच अनबन हो गई थी. सागरिका को अपने बच्चों की कस्टडी पाने के लिए कानूनी उपाय करने पड़े. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सागरिका अपने बच्चों को घर ले आई. उन्हें जनवरी 2013 में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा उनके बेटे अभिज्ञान और उनकी बेटी ऐश्वर्या की कस्टडी दी गई थी. लड़ाई जीतने के बाद, 2013 में NDTV के साथ एक बातचीत में सागरिका ने कहा, "यह एक बड़ी राहत है और मैं अपने शुभचिंतकों को धन्यवाद कहना चाहती हूं."
उन्होंने कहा, "मेरी परीक्षा आखिरकार खत्म हो गई. मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकती, क्योंकि मैं लंबे समय से अपने बच्चों से नहीं मिल पाई. मैं बस भगवान से प्रार्थना करती हूं कि बच्चे हमेशा मेरे साथ रहें."