60s की सबसे महंगी हीरोइन की 10 फोटो, शादीशुदा से हुआ प्यार तो 83 की उम्र में भी हैं कुंवारी

Asha Parekh Young 10 photos: आशा पारेख की 10 खूबसूरत फोटो, जो 60 से 70 के दशक में थीं सबसे महंगी एक्ट्रेस, शादीशुदा से हुआ प्यार तो ताउम्र रहीं कुंवारी. 

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most expensive heroine 60s 10 photos आशा पारेख की जवानी के दिनों की 10 फोटो
नई दिल्ली:

most expensive heroine Asha Parekh 60s 10 photos: हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर की जब भी बात होती है, तो आशा पारेख का नाम जरूर लिया जाता है. 60 और 70 के दशक में जब फिल्म इंडस्ट्री पुरुष कलाकारों के इर्द-गिर्द घूमती थी, उस दौर में आशा पारेख ने न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि अपनी फिल्मों की कामयाबी और लोकप्रियता के दम पर उस समय की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्री बन गई. उनके टैलेंट, मेहनत और लगन को देख हर कोई उन्हें अपनी फिल्मों में लेना चाहता था. आशा पारेख ने इंडस्ट्री में अपने अभिनय, नृत्य और व्यक्तित्व से जो मुकाम हासिल किया, वह बहुत कम कलाकारों को हासिल होता है.

आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 को गुजरात के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता हिंदू गुजराती थे और मां मुस्लिम थीं. बचपन से ही आशा को डांस में दिलचस्पी थी और उनकी मां ने इस शौक को पहचान कर उन्हें क्लासिकल डांस की ट्रेनिंग दिलवाई.

आशा पारेख एक ट्रेंड कथक डांसर थीं और उन्होंने छोटी उम्र में ही मंच पर परफॉर्मेंस देना शुरू कर दिया था. फिल्मों की ओर उनका झुकाव भी डांस की वजह से ही हुआ.

आशा पारेख ने फिल्मी दुनिया में कदम बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट रखा था, लेकिन उन्हें असली पहचान 1959 में आई फिल्म 'दिल दे के देखो' से मिली, जिसमें वह शम्मी कपूर के साथ नजर आईं. 

इस फिल्म की जबरदस्त सफलता ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. इसके बाद आशा पारेख ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 'जब प्यार किसी से होता है', 'तीसरी मंजिल', 'कटी पतंग', 'लव इन टोक्यो', 'आया सावन झूम के', 'आन मिलो सजना', 'दो बदन', और 'कारवां' जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने उन्हें इंडस्ट्री की टॉप एक्ट्रेसेस में शुमार कर दिया.

उनकी फिल्मों की सफलता और स्टारडम का आलम यह था कि निर्माता-निर्देशक उन्हें साइन करने के लिए कतार में लगे रहते थे. आशा पारेख को फिल्मों के लिए जो फीस मिलती थी, वह उस जमाने के कई बड़े मेल एक्टर्स से भी ज्यादा होती थी. 

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यह उस समय के लिहाज से बहुत बड़ी बात थी, जब महिलाओं को फिल्म इंडस्ट्री में सेकंड लीड की तरह देखा जाता था. उन्होंने यह साबित कर दिया कि टैलेंट और मेहनत के आगे कुछ भी मुश्किल नहीं. उनके पास लगातार फिल्में थीं और उनकी हर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल दिखा रही थी.

आशा पारेख का करियर सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं रहा. 1998 से 2001 तक वह केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की पहली महिला अध्यक्ष रहीं. 

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इस दौरान उनके कुछ फैसले विवादों में भी आए, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना मजबूती से किया. इसके अलावा, उन्होंने टेलीविजन और सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया. अभिनय से दूरी बनाने के बाद उन्होंने अपनी डांस एकेडमी शुरू की और भरतनाट्यम के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया.

उनकी निजी जिंदगी हालांकि उनके प्रोफेशनल करियर जितनी खुशहाल नहीं रही. उन्होंने कभी शादी नहीं की. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह फिल्म निर्माता नासिर हुसैन से प्यार करती थीं, लेकिन वह पहले से शादीशुदा थे. 

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आशा पारेख कभी किसी का घर तोड़कर अपना रिश्ता नहीं बनाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने सिंगल रहना चुना. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें अपने इस फैसले का कोई पछतावा नहीं है और वह अकेले में भी खुश हैं.

अपने शानदार करियर के लिए आशा पारेख को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया. उन्हें 1992 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया. 

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इसके अलावा, उन्हें 2020 में हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो उनके दशकों के योगदान का प्रतीक है. उन्होंने फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड भी 'कटी पतंग' के लिए जीता था.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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