मीना कुमारी (Meena Kumari) यानी ट्रेजडी क्वीन बॉलीवुड की सबसे सम्मानिक एक्ट्रेस है. मीना असमय दुनिया छोड़ कर चली गई. कम समय में ही उन्होंने बॉलीवुड में अपने लिए अलग मुकाम बनाया. वह बेहतरीन एक्ट्रेस तो थी ही बेहतरीन शायरा भी थीं. गीतकार जावेद अख्तर ने एक बार कहा था, “मीना कुमारी जैसे लोग विरोधाभास (paradoxes) हैं. हम उन्हें समझने की कोशिश करते हैं, हम उनकी सराहना करते हैं, हम उनकी आलोचना करते हैं, हम उन पर दया करते हैं, हम उन पर हंसते हैं, हम उनकी प्रशंसा करते हैं. लेकिन वो विरोधाभासी बने रहते हैं.”
मीना कुमारी का नाम महजबीन था. वह एक गरीब परिवार में पली-बढ़ीं. उनके पिता मास्टर अली बख्श पारसी रंगमंच और संगीत से जुड़े थे. उनकी मां इकबाल बेगम एक एक्ट्रेस और नर्तकी थीं. कम लोगों को पता होगा कि मीना कुमारी कोलकाता के प्रतिष्ठित टैगोर परिवार से संबंधित थीं. मीना कुमारी की दादी हेमसुंदरी टैगोर का विवाह जदू नंदन टैगोर (1840-1862) से हुआ था, जो दर्पण नारायण टैगोर के परपोते और रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के चचेरे भाई थे. हेमसुंदरी अपने समय से बहुत आगे सोच रखती थीं. अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने सदियों पुराने रीति-रिवाजों पर सवाल उठाया, जहां विधवाओं को कठोर अमानवीय नियमों से गुजरना पड़ता था और स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का साहसिक निर्णय लिया और नर्स के रूप में काम करने के लिए मेरठ चली गईं.
मेरठ में काम करते हुए उनकी मुलाकात स्थानीय साहित्यिक कवि मुंशी प्यारे लाल शाकिर से हुई और बाद में दोनों ने शादी कर ली. वह ईसाई थे, ऐसे में शादी के बाद उन्होंने भी ईसाई धर्म अपना लिया. दोनों की एक बेटी हुई प्रभावती देवी. वह एक प्रतिभाशाली गायिका थीं. बाद में फिल्मों में गाने के लिए वह बॉम्बे चली आईं. यहां वह हारमोनियम वादक और संगीत शिक्षक मास्टर अली बख्श से मिली. उन्हें प्यार हुआ और शादी करने के लिए वह प्रभावती से इकबाल बानो बन गईं.
इकबाल यहां फिल्मों में एक्ट्रेस और नर्तकी थीं तो अली संगीत वाद्ययंत्र बजाते थे. समस्या तब शुरू हुई, जब उनकी पहली संतान एक बेटी हुई. अली को एक बेटा होने की उम्मीद थी, लेकिन दूसरी बार भी बेटी का जन्म हुआ. कहा जाता है कि निराश होकर अली ने बच्चे को एक अनाथालय छोड़ने का फैसला लिया, लेकिन फिर उन्हें बच्ची पर तरस आई और वह उसे घर लाए. वह महजबीन थी. सिल्वर स्क्रीन की 'ट्रेजडी क्वीन' मीना कुमारी उर्फ महजबीन का बचपन घोर गरीबी, अपमान, अस्वीकृति और अकेलेपन में गुजरा.
महजबीन एक बाल कलाकार के रूप में करियर की शुरुआत की. अपने 33 साल के लंबे करियर में मीना कुमारी ने कई फिल्में की. जिनमें बैजू बावरा (1952), दाएरा (1953), साहिब बीबी और गुलाम (1962) और उनका हंस गीत, पाकीज़ा (1972) जैसी क्लासिक्स भी शामिल हैं. उन्होंने अपने करियर में चार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते और 1963 में साहिब बीबी और गुलाम के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला.
दिवंगत पत्रकार विनोद मेहता ने उनकी जीवनी लिखी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था, "आज के सितारों के विपरीत, उसके कई आयाम थे - वह कविता पढ़ती थी, साहित्य से लगाव रखती थी, उच्च जीवन की आकांक्षा रखती थी और एक शराबी थी. मीना कुमारी के परिवार ने भी उनका शोषण किया और जब उन्होंने कमाल अमरोही से शादी की तो उनके साथ विश्वासघात हुआ.
मीना कुमारी को अशोक कुमार ने फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक कमाल अमरोही से मिलवाया था. इसके तुरंत बाद वह एक बड़ी कार दुर्घटना का शिकार हुई और उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया. अस्पताल में रहने के दौरान, कमाल नियमित रूप से उनसे मिलने जाते थे और समय बिताते थे. अमरोही पहले से शादीशुदा और तीन बच्चों के पिता थे. दोनों ने 1952 में गुपचुप तरीके से शादी कर ली. बाद में कमाल ने हर तरह से उन्हें अपमानित किया.
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