महिलाओं के बिना एक गांव, मातृभूमि: ए नेशन विदाउट वुमन में पढिए हैरान कर देने वाली कहानी

एक गांव में लड़कियों की बहुत कमी हो गई. वहां शादी करने के लिए लड़की मिलनी मुश्किल हो गई, ऐसे में एक बाप ने एक गरीब लड़की के माता-पिता से पैसे देकर लड़की की शादी अपने 5 बेटों से करा दी.

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इस गांव में एक दुल्हन की हुई थी 5 भाइयों से शादी
नई दिल्ली:

एक गांव में लड़कियों की बहुत कमी हो गई. वहां शादी करने के लिए लड़की मिलनी मुश्किल हो गई, ऐसे में एक बाप ने एक गरीब लड़की के माता-पिता से पैसे देकर लड़की की शादी अपने 5 बेटों से करा दी. यह कहानी है 2003 में आई फिल्म मातृभूमि: ए नेशन विदाउट वीमेन की है. मनीष झा द्वारा लिखित यह एक ट्रेजेडी फिल्म है. फिल्म कन्या भ्रूण हत्या पर आधारित है. इसमें दिखाया गया है कि कन्या भ्रूण हत्या के बाद कैसे समाज का संतुलन बिगड़ गया.

यह एक अवॉर्ड विनिंग फिल्म है. फिल्म में बिहार के गांव को दिखाया गया है. एक गांव का कपल, जिसकी पत्नी की डिलीवरी होनी है और वे बेटे की उम्मीद कर रहे हैं. निराश परिवार बच्ची को पैदा होते ही दूध की बाल्टी में डुबो देता है. कई साल बाद यहां लड़कियों की कमी हो जाती है. गांव में बस वृद्ध महिलाएं बचती हैं. आक्रामक युवक शादी करना चाहते हैं. उन्हें किसी भी कीमत पर पत्नी चाहिए, इसके लिए मानव तस्करी तक के लिए तैयार हैं.

रामचरण (सुधीर पांडे) गांव के अमीर व्यक्ति हैं और पांच जवान बेटों के पिता हैं. उन्हें कल्कि (ट्यूलिप जोशी) नाम की एक अकेली लड़की के बारे में पता चलता है, जो गांव से कुछ दूरी पर रहती है और उसे उसके पिता से खरीदते हैं और सभी पांच बेटों से एक साथ शादी कर देते हैं. सभी उसके साथ गलत व्यवहार करते हैं, केवल सबसे छोटे सूरज (सुशांत सिंह) का व्यवहार उसके साथ ठीक है.

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कल्कि सूरज को ज्यादा महत्व देने लगती है, ऐसे में ईर्ष्यालु भाई  उसे मार देते हैं. कल्कि वहां से भागना चाहती है, लेकिन उसके पिता भी उसे मदद करने से मना कर देते हैं. उसकी खराब होती हालत को देख कर घर का एक नौकर उसे  भागने में मदद करता है. लेकिन तभी सभी भाई मिलकर बेरहमी से उसकी हत्या कर देते हैं. कल्कि को एक गौशाला में एक जंजीर से बांध दिया जाता है. अब वह बदले की मोहरा बन जाती है. गांव की निचली जाति के लोग नौकर की  मौत के लिए उसे जिम्मेदार ठहराते हैं और गैंग रेप के जरिए बदला लेने का फैसला करते हैं. कल्कि को उसके पतियों के पास वापस भेज दिया जाता है.

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 कल्कि अब प्रेग्नेंट है. सभी खुश हैं. जैसे ही यह खबर फैलती है, इलाके का हर आदमी अजन्मे बच्चे के पिता होने का दावा करता है.गांव में हिंसा भड़क जाती है. कल्कि और उसके बच्चे पर अधिकार जताने के लिए गांव के पुरुष एक-दूसरे को मार डालते हैं. इसी बीच कल्कि लेबर में चली जाती है. फिल्म एक हिंसक लेकिन आशावादी नोट पर समाप्त होती है, क्योंकि वह एक बच्ची को जन्म देती है.

निर्देशक मनीष झा तो इस फिल्म का विचार एक गुजरात के एक ऐसे गांव के बारे में पढ़कर आया, जिसमें महिलाएं नहीं थीं. बाद में उन्होंने इस विषय पर काफी रिसर्च कर के फिल्म बनाया.

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