अलविदा मनोज कुमार: 1960 से लेकर 1980 तक, भारत कुमार की वो 7 फिल्में, जिन्होंने बनीं ट्रेंडसेटर

87 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले सुपरस्टार मनोज कुमार की वो सुपरहिट फिल्में, जिन्होंने ट्रेंड किया सेट.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
Manoj Kumar superhit movies मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्में
नई दिल्ली:

87 साल की उम्र में पीढ़ियों को अपने अभिनय से मुत्तासिर करने वाला अदाकार छोड़ कर चला गया. और पीछे सौंप गया वो विरासत जिस पर उसकी फिल्मी बिरादरी को ही नहीं, पूरे भारत को गर्व है. शाहकार ऐसा जो 'पूरब' से निकल कर 'पश्चिम' के लंदन तक गूंजा। विरले ही होता है कि कोई कलाकार आए और सिल्वर स्क्रीन पर एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन दशकों तक लगातार ऐसी फिल्में दे जो वर्षों तक दिलो-दिमाग को कुरेदती रही. हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी ऐसी ही शख्सियत का नाम था. गोस्वामी दिलीप कुमार के जबर फैन थे. एक फिल्म देखी जिसमें दिलीप के किरदार का नाम मनोज था, फिर क्या था, अपना नाम मनोज रख लिया. देशभक्ति रगो में समाई थी, इसलिए मां भारती को समर्पित एक से बढ़कर एक फिल्म बनाई, लोगों ने प्यार से 'भारत कुमार' पुकारना शुरू कर दिया. उन्हें अपने देश और इसकी संस्कृति पर बड़ा नाज था, और यह झलक उनकी फिल्मों में भी दिखी.

फिल्मी सफर 1957 में फिल्म 'फैशन' से शुरू हुआ, जो 80 के दशक तक कायम रहा. कुछ ऐसे चलचित्र थे जिन्होंने मनोज कुमार के बहुआयामी व्यक्तित्व से सीधा साक्षात्कार कराया. 1960 से 1980 के दशक तक 7 फिल्मों में निभाए किरदार अब भी लोगों के जेहन में खुरच कर लिखे जा चुके हैं.

बात उन सात फिल्मों की जो ट्रेंडसेटर भी थीं, सुपरहिट भी और मर्मस्पर्शी भी. चॉकलेटी हीरो की इमेज को तोड़ती फिल्म थी शहीद, जो 1965 में रिलीज हुई. कौन भूल सकता है भगत सिंह का वो कालजयी किरदार। ये फिल्म आजादी के बेखौफ परवानों की कहानी कहती थी.

Advertisement

60 के दशक में दो फिल्में आईं और दोनों ने कामयाबी की नई इबारत लिखी. एक थी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मनुहार पर बनी उपकार (1967) और दूसरी थी प्योर लव स्टोरी 'पत्थर के सनम'.

Advertisement

उपकार एक कल्ट फिल्म रही. गुलशन बावरा का गीत 'मेरे देश की धरती' उस दौर में भी हिट था और आज की जेन अल्फा भी इसे उतनी ही शिद्दत से जीती है, और ये इसलिए हो पाया क्योंकि इस फिल्म को मनोज कुमार ने बड़े मनोयोग से रचा था. शास्त्री जी के 'जय जवान जय किसान' का नारा फिल्म का आधार था.

Advertisement

1967 में ही पत्थर के सनम पर्दे पर आई. दो हसीनाओं के बीच जूझते एक शख्स राजेश की कहानी थी. 'राजेश' उपकार के 'भारत' से बिल्कुल अलग था. इस फिल्म को भी काफी पसंद किया गया.

Advertisement

इसके बाद 1970 में रिलीज हुई 'पूरब और पश्चिम'. भारतीय सिने इतिहास की पहली फिल्म जिसका विषय एनआरआई यानी नॉन रेसिडेंट इंडियंस थे. एक पिता का दर्द जो कमाई के चक्कर में विदेश तो चला गया, लेकिन वहां अपनी बेटी में आए बदलाव को सहन नहीं कर पा रहा है. उस दर्द को बखूबी बयां किया गया. ये भी सुपरहिट फिल्म रही. इंदीवर का लिखा गीत 'प्रीत जहां की रीत सदा' उस दौर के हिट गीतों की लिस्ट में शुमार हुआ.

फिर आई शोर. 1972 में रिलीज फिल्म ने खामोशी से कामयाबी का शोर मचा दिया. पिता-पुत्र के रिश्तों को बुनती फिल्म ने लोगों को हंसाया तो रुलाया भी खूब। ये उस साल की सुपरहिट मूवी रही.

1974 की रोटी, कपड़ा और मकान समाज के ठेकेदारों के मुंह पर तमाचा जड़ती थी और सत्ता में बैठे रसूखदारों के कानों तक देश के युवा और मध्यम वर्ग की दुश्वारियां पहुंचाती थी. मल्टीस्टारर फिल्म को खूब पसंद किया गया. इसके गाने भी जोरदार थे.

1981 में आई 'क्रांति' ने एक बार फिर मनोज कुमार का दम दुनिया को दिखाया. सितारों से भरी फिल्म में देश के लिए कुर्बान होने का जज्बा लोगों को खूब भाया. 'क्रांति' भी एक सुपरहिट फिल्म साबित हुई.

मनोज कुमार ने 3 दशक तक फैन बेस को बनाए रखना. हर तबके तक अपनी बात पहुंचाना यही खासियत थी उनकी. मिट्टी से प्यार, संस्कृति पर गर्व और बड़ों का आदर-सम्मान करने का पाठ भी इस कलाकार ने अपनी अद्भुत शैली से सबके सिखाया. मुंह पर हाथ फेरकर, झुककर झटके से कनखियों से देखना एक स्टाइल बन गया, जिसकी नकल उतार कइयों ने कामयाबी बटोरी.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Pakistan के लिए बन रहा फाइनल प्‍लान! 40 मिनट तक चली PM Modi और रक्षा मंत्री की बैठक