मनोज कुमार इस वजह से हो गए थे डिप्रेशन के शिकार, शराब का लिया सहारा तो घर से निकलना कर दिया था बंद

भारत कुमार के नाम से पॉपुलर मनोज कुमार की जिंदगी में एक दौर ऐसा भी आया जब एक झटके ने उन्हें डिप्रेशन की ओर धकेल दिया. इसके कारण उन्होंने शराब का सहारा लिया. 

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आज होगा मनोज कुमार का अंतिम संस्कार
नई दिल्ली:

सुपरस्टार मनोज कुमार, जो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उनकी देशभक्ति की फिल्मों ने ऐसी जगह फैंस के बीच बनाई कि वह भारत कुमार के नाम से मशहूर हो गए. मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी था. लेकिन शबनम (1949) फिल्म में दिलीप कुमार इनको इतने पसंद आए की उनसे प्रेरणा लेकर उन्होंने अपना स्क्रीन नाम मनोज कुमार रख लिया. फिर क्या उन्होंने ठान ली की अब जिंदगी में दिलीप कुमार जितना नाम नहीं कमाया तो क्या किया. कुछ साल बाद अपने आप को मनोज कुमार कहने वाले ये एक्टर 60s में इतना फेमस हो गए, जिसके बाद इन्हें लोगों से एक नया नाम मिला और बने बॉलीवुड के भारत कुमार.

भारत कुमार न सिर्फ बेहतरीन एक्टर बल्कि उम्दा राइटर और डायरेक्टर भी थे. उन्होंने बॉलीवुड को उपकार(1967), रोटी कपडा और मकान(1974), शहीद(1965), पूरब और पश्चिम(1970), वह कौन थी(1964), शोर(1972), गुमनाम(1965), क्रांति(1981), पत्थर के सनम(1967), मेरा नाम जोकर(1970) जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया था. और क्या आप जानते हैं मनोज कुमार ने अपने आइकोनिक डायलॉग्स से इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाई थी. उनके कुछ ऐसे एवरग्रीन डॉयलाग हैं जो आप आज भी कहीं न कहीं सुने होंगे, जैसे "इंसान इस दुनिया में चार दिन की जिंदगी गुजारने आता है... लेकिन चालीस दिन का गम उसे घेरे रखता है".

स्टारडम के दौर में जब सब अच्छा चल रहा था तो किस्मत ने उनके साथ कुछ ऐसा खेल खेला कि वह डिप्रेशन की ओर बढ़ गए. साल था 1983 जब मनोज कुमार के पिता एच.एल. गोस्वामी व्रजेश्वरी मंदिर जा रहे थे, तभी भयंदर क्रीक के पास उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई और नदी में फूल डालकर अर्चना के लिए जैसे ही वो पुराने ब्रिज पर चलने लगे तभी उनका पैर फिसला और वह नदी में जा गिरे. नदी का बहता पानी उन्हें भी अपने साथ बहा ले गया. हालांकि कई दिनों तक ढूंढ़ने के बाद मनोज कुमार के पिता का शव मिल गया. लेकिन पिता की अचानक मृत्यु ने बेटे को झकझोर दिया था. इसकी वजह से मनोज कुमार डिप्रेशन में चले गए थे और उन्होंने शराब का सहारा लिया. इसके कारण उनका वजन भी बढ़ गया. जबकि उन्होंने घर से निकलना बंद कर दिया.

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इसके बाद 1983 के 4 साल बाद मनोज कुमार 1987 में कलयुग और रामायण  में नजर आए. वहीं 1989 में संतोष और क्लर्क में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. जबकि 1991 में देशवासी और आखिरी फिल्म 1995 में आई मैदान ए जंग में वह सिल्वर स्क्रीन पर नजर आए. 
 

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