बॉलीवुड ओटीटी के लिए खूब मसाला बना रहा है. माहौल वैसा ही होता जा रहा है जैसे एक समय सिनेमा हॉल पर एक ही हफ्ते में रिलीज होने जा रही ढेर सारी फिल्मों जैसा होता था. कई मसाले सिनेमाघर पर आते थे. लेकिन क्वालिटी की कमी के कारण औंधे मुंह गिरते थे. जी5 पर रिलीज हुई बॉबी देओल, सान्या मल्होत्रा और विक्रांत मैसी की फिल्म भी कुछ ऐसी ही फिल्म है. फिल्म कहानी से लेकर एक्टिंग तक हर मोर्चे पर पूरी तरह से विफल रही है. कहीं-कहीं तो ऐसा भी लगता है कि डायरेक्टर फिल्म बनाने या इसे वेब सीरीज बनाने की बीच भी कहीं कन्फ्यूज रहे हैं.
लव हॉस्टल की कहानी आशू और ज्योति की है. आशू मुसलमान है. दोंनों घरवालों की मर्जी के खिलाफ शादी कर लेते हैं. लेकिन ज्योति की दादी पावरफुल है. उसे यह कतई पसंद नहीं है. पुलिस सुरक्षा की खातिर दोनों को सेफ होम में भेज दिया जाता है. यहां और भी कई कपल रहते हैं. लेकिन दादी नामी कातिल डागर को इन दोनों को खत्म करने का जिम्मा सौंपती है. डागर जात बिरादरी से बाहर प्रेम विवाह करने वालों को मौत के घाट उतारने के लिए पहचाना जाता है. इस तरह एक अच्छा विषय उठाया गया. लेकिन बहुत कुछ दिखाने के चक्कर में डायरेक्टर कुछ भी सही से नहीं दिखा सके. ढेर सारे कैरेक्टर डाल दिए, और डागर ऐसा शख्स है जो शहर में एक रात में 20-25 कत्ल कर देता है. लेकिन पुलिस से लेकर सत्ता तक किसी को कोई परवाह नहीं है. जो बहुत ही बचकाना लगता है. फिर कहानी में तीखापन नदारद है. जिस तरह का लव हॉस्टल दिखाया गया है, वह कल्पना से परे है. ऐसा लगता है कि शंकर रमन ने यह फिल्म किसी गहन अध्ययन के बना दी है.
एक्टिंग की बात करें तो आशू के किरदार में विक्रांत मैसी और ज्योति के किरदार में सान्या मल्होत्रा एकदम ऑफ हैं. दोनों की ही एक्टिंग बिल्कुल भी समझ नहीं आती है. शायद यहां वह डायरेक्टर किरदारों को पकड़ने में नाकाम रहे हैं. वहीं बॉबी देओल को खतरनाक कातिल बनाया गया है. जिसके अंदर कोई दया नहीं. उनको एक ही तरह के एक्सप्रेशन दिए गए हैं, और उन्होंने उसे सही निभाया भी है. लेकिन डायरेक्टर को समझ नहीं आया, बॉबी देओल से क्या करवाना है. इस तरह 'लव हॉस्टल' एक मजबूत विषय पर बनाई गई, बेहतर कमजोर फिल्म है.
रेटिंग: 1.5/5 स्टार
डायरेक्टर: शंकर रमन
कलाकार: बॉबी देओल, विक्रांत मैसी और सान्या मल्होत्रा