किसी के लिए दीवानगी कितनी गहरी हो सकती है? जब चाहत पागलपन की हद पार कर जाए, तो वो फैन और स्टार का रिश्ता इतिहास बन जाता है. आज के दौर में फैंस सोशल मीडिया पर स्टार्स को ट्रेंड करते हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब लोग अपने पसंदीदा कलाकारों के लिए अपनी दुनिया दांव पर लगा देते थे. हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में एक ऐसी ही दीवानगी देखने को मिली थी भारत की पहली फीमेल सुपरस्टार कज्जनबाई के लिए. कहा जाता है कि एक तांगेवाला उनकी फिल्म को 22 बार देखने गया और अपने घोड़े तक गिरवी रख दिए थे- बस उन्हें पर्दे पर देखने के लिए.
कज्जनबाई का जन्म 15 फरवरी 1915 को लखनऊ की तवायफ सुग्गनबाई के घर हुआ था. असली नाम था जहांआरा कज्जन. उनकी परवरिश कोठों की चकाचौंध में हुई, लेकिन खून में कला थी और दिल में सपने. सुग्गनबाई ने बेटी को सिर्फ गाना सिखाने तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें इंग्लिश और उर्दू की पढ़ाई के लिए पटना भेजा ताकि बेटी का हुनर और निखर सके. क्लासिकल सिंगिंग में माहिर कज्जनबाई की आवाज में वो जादू था जो शाही दरबारों से लेकर फिल्मी परदों तक गूंज उठा.
कज्जनबाई ने शुरू में बतौर सिंगर पहचान बनाई. उनकी परफॉर्मेंस उस दौर में इवेंट की शान होती थी. उन्हें एक शो के लिए 250 से 300 रुपये तक मिलते थे, जो तब बहुत बड़ी रकम थी. उनकी ख्याति ऐसी बढ़ी कि उन्हें फिल्म ‘शिरीन फरहाद' में गाने और अभिनय दोनों का मौका मिला. यह फिल्म देश की दूसरी बोलती फिल्म थी, जिसमें 42 गाने थे. सभी कज्जनबाई और निसार ने मिलकर गाए. फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की और महज़ 16 साल की उम्र में कज्जनबाई भारत की पहली महिला सुपरस्टार बन गईं.
कहा जाता है, उनकी लोकप्रियता इस कदर थी कि लाहौर का एक तांगेवाला फिल्म को 22 बार देखने गया. उसकी दीवानगी इतनी गहरी थी कि उसने अपने घोड़े तक गिरवी रख दिए. सिर्फ इसलिए कि वो अपनी पसंदीदा हीरोइन को बड़े पर्दे पर देख सके. कज्जनबाई न सिर्फ सुरों की मल्लिका थीं, बल्कि वो उस दौर की वो महिला थीं जिन्होंने अपने दम पर कोठे से निकलकर सिनेमा के इतिहास में सुनहरा अध्याय लिखा.