प्रशांत शिशौदिया: कहानी - सलीम अंसारी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ ज़िंदगी बिता रहा है और अचानक एक दिन उसकी गाय खो जाती है. अब सलीम को डर है की दूसरे समुदाय के लोग इस घटना को ग़लत नज़रिए से ना देखें और कहीं उनकी और उनके परिवार ज़िंदगी कहीं ख़तरे में ना पड़ जाए और पूरे दम-ख़म के साथ वो जुट जाते हैं गाय को ढूंढने में. अब गाय मिलेगी या नहीं ? सलीम और उसका परिवार इस मुश्किल से निकल पाएगा ये नहीं ? इन सब सवालों के जवाब फ़िल्म में हैं जो आपको फ़िल्म देखने पर ही मिलेंगे.
ख़ामियां
फ़िल्म की प्रोडक्शन क्वालिटी दर्शकों को थोड़ी कमजोर लग सकती है. कई जगह फ़िल्म में डायलॉग साफ़ सुनाई नहीं देते जिसके लिए साउंड डिपार्टमेंट ज़िम्मेदार है.दो तीन दृश्यों में डायलॉग कमजोर लगते हैं और इम्प्रॉविज़ेशन सिर्फ़ वक्त खाता नज़र आता है.
खूबियां
इस फ़िल्म की सबसे मज़बूत कड़ी है, इसका विषय जो आज के वक्त में एक दम सटीक है और बड़ी ख़ूबसूरती और संजीदगी से लेखक और निर्देशक साईं कबीर ने इस अंजाम दिया है. सबसे अच्छी बात ये फ़िल्म 189 मिनट की है और इसमें कहीं भी ज़बर्दस्ती के बॉलीवुड फ़ॉर्मूले ठूंसने की कोशिश नहीं की गई और फ़िल्मकार ने विषय के साथ पूरी ईमानदारी दिखाते हुए समाज की एक छवि प्रस्तुत की है. एक अच्छे विषय और कहानी को अगर संजय मिश्रा जैसे कलाकार का साथ मिल जाए तो सोने पे सुहागा, संजय बड़ी ख़ूबसूरती के साथ आपके होठों पर मुस्कुराहट बिखेरते हुए आप की सोच को झकझोर जाते हैं. वो एक क़द्दावर अभिनेता हैं जो कई बेहतरीन फ़िल्मों में अपनी छाप छोड़ चुके हैं और यहां भी वो आपके दिलों में घर कर जाते हैं.
सादिया सिद्दीक़ी, तिग्मांशु धूलिया मंझे हुए कलाकार है और बेहतरीन अभिनय का प्रदर्शन करते हैं. वहीं मुकेश भट्ट मज़बूती के साथ संजय के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने अभिनय का बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं. फ़िल्म का गीत ‘मदारी‘ मलोडीयस तो है ही, साथ ही इसके बोल और सुखविंदर द्वारा इसकी गायकी ज़हन में गूंजती रहती है. फ़िल्म का क्लाइमैक्स आपको सोचने पर मजबूर करता है और फ़िल्म का विषय सिनेमाहॉल से बाहर निकलने के बाद भी आपको फ़िल्म से बाहर नहीं निकलने देता. तो मेरे हिसाब से ये फ़िल्म देख कर आप मायूस नहीं होंगे. मैं इसे दूंगा 3.5 स्टार्स.
कलाकार - संजय मिश्रा , मुकेश भट्ट , सादिया सिद्दीक़ी, तिग्मांशु धूलिया और मेहमान भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी