मुंबई के माहिम की गलियों में पली-बढ़ी एक सीधी-सादी लड़की जिसके सपने आसमान जितने बड़े थे और हौसला भी उतना ही दमदार. नाम था रुकसाना. लोग उनकी खूबसूरती देखकर कहते- 'अरे, ये तो बिल्कुल हेमा मालिनी जैसी दिखती है'. बचपन से ही आईने में खुद को देख-देखकर वो सोचती थीं कि एक दिन बड़े पर्दे पर उनका भी नाम होगा और यही ख्वाब उन्हें मायानगरी की चमचमाती दुनिया तक ले आया. रुकसाना की किस्मत का एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब लोगों ने नोटिस किया कि उनकी शक्ल-सूरत मशहूर एक्ट्रेस और बॉलीवुड की ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी से काफी मिलती है.
इंडस्ट्री में ये चर्चा इतनी बढ़ी कि उन्होंने अपना नाम बदलकर मधु मालिनी रख लिया. नया नाम और ये तुलना रुकसाना के करियर के लिए एक खास पहचान बन गई हर देखते ही देखते रुकसाना मधु मालिनी बन गईं.
छोटे किरदारों से मिली शुरुआत
मधु मालिनी ने अपने करियर की शुरुआत छोटे-छोटे रोल से की. 1975 की प्रतिज्ञा और 1977 की ड्रीम गर्ल जैसी फिल्मों में उन्होंने ऐसे किरदार निभाए. जो भले ही ज्यादा लंबे न थे लेकिन इंडस्ट्री में उनका चेहरा पहचानने लायक जरूर बना गए. असली ब्रेक उन्हें 1978 में मुकद्दर का सिकंदर से मिला जिसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन की बहन का रोल निभाया. इस रोल के बाद उनकी अदाकारी को सराहा जाने लगा और वे एक बेहतरीन सपोर्टिंग एक्ट्रेस के रूप में जानी जाने लगीं.
हिट फिल्मों की लंबी लिस्ट
मुकद्दर का सिकंदर के बाद मधु मालिनी लगातार बड़े बैनर की फिल्मों में नजर आईं. लावारिस, एक दूजे के लिए, खुद्दार और रज़िया सुल्तान में उनके रोल भले ही साइड में रहे. लेकिन उनका स्क्रीन प्रेज़ेंस ऑडियंस का ध्यान खींचने के लिए काफी था. 1983 की फिल्म अवतार में खलनायिका बहू के रूप में उनका काम इतना दमदार था कि लोग उनकी एक्टिंग के कायल हो गए.
रीजनल सिनेमा का भी रुख किया
जब हिंदी फिल्मों में लीड रोल का मौका नहीं मिला. तो मधु मालिनी ने अपनी सीमाएं तोड़कर रीजनल सिनेमा का रुख किया. उन्होंने पंजाबी. मलयालम. तमिल. कन्नड़. तेलुगु और गुजराती फिल्मों में भी बेहतरीन काम किया. 1983 में पंजाबी फिल्म अंबरी में वो पहली बार लीड रोल में नजर आईं. यह उनके करियर का एक अहम मुकाम था क्योंकि यह वही सपना था. जिसे वो लंबे समय से पूरा करना चाहती थीं.
अधूरी कहानी और रहस्यमयी अंत
कई भाषाओं और दर्जनों फिल्मों में काम करने के बाद भी मधु मालिनी को वह स्टारडम नहीं मिला जिसकी वो हकदार थीं. 1980 के दशक के आखिर में वो अचानक सुर्खियों में आईं लेकिन इस बार वजह खुशी की नहीं थी. वो अपने फ्लैट में मृत पाई गईं. उनकी उम्र उस समय सिर्फ 33 साल थी. मौत का कारण साफ नहीं हो पाया. जांच चली लेकिन किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंची. और उनकी कहानी अधूरी ही रह गई.