कास्ट - अन्नू कपूर , मनोज जोशी, अश्विनी कालसेकर, पार्थ समथान, परितोष त्रिपाठी, अदिति भटपहरी, अंकिता द्विवेदी.
लेखक - राजन अग्रवाल, सूफ़ी.
निर्देशक -कमल चंद्रा.
कहानी- ये एक क़व्वाल के परिवार की कहानी है जिसका किरदार अन्नू कपूर ने निभाया है जो एक रूढ़िवादी सोच रखता है और जिसके 11 बच्चे हैं और बारवाह होने के है पर उनकी कम उम्र की पत्नी पहले ही 5 बच्चों को जन्म दे चुकी है और छठे बच्चे की पैदाइश उनकी जान को ख़तरा पैदा कर सकती है. डॉक्टर के लाख माना करने पर भी अन्नू कपूर का किरदार इस बच्चे के एबॉर्शन के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वो मानता है की बच्चे ऊपर वाले की देन हैं और एबॉर्शन करना ऊपर वाले के ख़िलाफ़ जाना है पर इस परिवार की बड़ी बेटी अपनी सौतेली माँ को खोने लिए तैयार नहीं है और वो अपने पिता के ख़िलाफ़ कोर्ट में केस कर देती है. फ़िल्म में इस मुद्दे के अलावा महिलाओं से जुड़े और कई मुद्दे हैं जो अहम हैं.
कुछ बातें
कोर्ट में क़रीब तीन हफ़्तों तक संघर्ष कर रही इस फ़िल्म को जजों ने भी देखा और कहा की ये फ़िल्म एक अहम संदेश देती है और फ़िल्म देखते वक़्त मुझे ऐसा ही अहसास हुआ क्योंकि ये फ़िल्म सिर्फ़ जनसंख्या ही नहीं बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति फिर चाहे वो पत्नी हो या बेटी , बड़े बुजुर्गों की रूढ़िवादी सोच और एक तबके की शिक्षा प्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है.
ख़ामियां
इस फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है इसका प्रोडक्शन डिज़ाइन , ये फ़िल्म टाइट बजट में बनी लगती है इसलिए लोकेशंस, लाइटिंग और सिनेमेटोग्राफ़ी पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया.
साउंड डिज़ाइन भी फ़िल्म की एक ख़ामी है जिसे ज़्यादातर बैकग्राउंड स्कोर से ढाँपा गया है ।निर्देशक को थोड़ा तकनीकियों पर थोड़ा सा और ध्यान देना चाहिए था.
फ़िल्म के दूसरे भाग में कोर्ट रूम ड्रामा है जो की आख़िर के हिस्से में खींचता हुआ नज़र आता है.
कहीं -कहीं एडिटिंग करते वक़्त डॉयलॉग्स की रवानगी या इमोशंस पर ध्यान नहीं रखा गया , यानी डायलॉग का एक पेस है और जब दूसरा शॉट आता है उसी सीन का तो डायलॉग की अदायगी सहज नहीं लगती यानी पेस चेंज हो जाता है.
खूबियां
फ़िल्म का विषय इसकी सबसे बड़ी खूबी है जहां बड़ी ख़ूबसूरती से एक ही फ़िल्म में महिलाओं के कई मुद्दे एक ही परिवार के ज़रिये उठाये गये हैं.
फ़िल्म की दूसरी बढ़ी खूबी है इसकी लिखाई साथ ही इसके डॉयलॉग्स, हो सकता है कुछ लोगों को उर्दू समझ ना आये पर जिन्हें आती है वो इन्हें सराहेंगे.
फ़िल्म की तीसरी बड़ी खूबी है अन्नू कपूर, वो एक अच्छे अभिनेता हैं और यहाँ भी उन्होंने कमाल का काम किया है , उर्दू भाषा और किरदार के ग्राफ पर उनकी पकड़ ज़बर्दस्त है.
इसके अलावा अन्नू कपूर ने इस फ़िल्म के कुछ गानों को आवाज़ भी दी है और वो एक बेहतरीन सिंगर की तरह छाप छोड़ते हैं और उससे भी बेहतर मुझे लगा जिस तरह एक मँझे हुए क़व्वाल की तरह जब वो स्क्रीन पर इन क़व्वालियों पर अभिनय करते हैं , क़व्वालों की छोटी छोटी बारीकियाँ उन्होंने अपने किरदार में उतारी हैं.
पार्थ का अभिनय अच्छा है और वो एक कॉंफिडेंट अभिनेता की तरह स्क्रीन पर छाप छोड़ते हैं. अश्विनी अपने किरदार में अच्छी है, अंकिता द्विवेदी और अदिति का काम भी अच्छा है.
फ़िल्म की दोनों क़व्वालियाँ और एक रोमांटिक गाना अच्छा है.
फ़िल्म की आत्मा सही है सिर्फ़ इसे और बेहतर तरीक़े से सजाने की ज़रूरत थी, मेरी तरफ़ से इसे 3.स्टार्स.