‘गुस्ताख इश्क’ रिव्यू: जानें कैसी है विजय वर्मा और फातिमा सना शेख की फिल्म

कहानी सैफुद्दीन की है, जो अपने पिता की प्रिंटिंग प्रेस को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. घर की आर्थिक हालत कमजोर है और उसका भाई उसे एक अश्लील नावेल छापने के लिए मजबूर करता है, लेकिन यह सैफुद्दीन को मंज़ूर नहीं.

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‘गुस्ताख इश्क’ रिव्यू: जानें कैसी है विजय वर्मा और फातिमा सना शेख की फिल्म
नई दिल्ली:

कलाकार: विजय वर्मा, फातिमा सना शेख, नसीरुद्दीन शाह, शरिब हाशमी
निर्देशन: विभु पुरी
निर्माता: मनीष मल्होत्रा

कहानी

कहानी सैफुद्दीन की है, जो अपने पिता की प्रिंटिंग प्रेस को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. घर की आर्थिक हालत कमजोर है और उसका भाई उसे एक अश्लील नावेल छापने के लिए मजबूर करता है, लेकिन यह सैफुद्दीन को मंज़ूर नहीं. वह अपने दौर के मशहूर शायर अजीज को ढूंढकर उनका शागिर्द बनता है, और इसी सफर में उनकी बेटी मिनी से इश्क कर बैठता है. अब सवाल यह है क्या सैफुद्दीन अपनी प्रेस बचा पाएगा? और क्या सैफुद्दीन और मिनी के प्यार को मंजिल मिलेगी?

कमियां
    •    मध्यांतर से पहले किरदारों से भावनात्मक जुड़ाव पूरी तरह महसूस नहीं होता.
    •    संवादों की अधिकता के कारण पहले हिस्से में गति थोड़ी धीमी महसूस होती है.
    •    पहले भाग का स्क्रीनप्ले और तेज़ व कसदार हो सकता था.
    •    नसीरुद्दीन शाह की एक ही सुर में प्रस्तुति शुरुआती हिस्सों में कुछ खटकती है.

खूबियां
    •    मध्यांतर के बाद फ़िल्म पकड़ मजबूत कर लेती है और शुरुआती शिकायतें दूर कर देती है.
    •    हिंदी सिनेमा की वह खोई हुई दुनिया शायरी, ठहराव, नफासत और मोहब्बत फिल्म फिर से ताज़ा कर देती है.
    •    छोटी-सी दुनिया के छोटे और प्यारे किरदार नए भी लगते हैं और अपने भी.
    •    संवाद और लेखन बेहद खूबसूरत, काव्यात्मक और दिल को छू लेने वाले.
    •    विशाल भारद्वाज का संगीत और गुलजार साहब के बोल जादूगरों की यह जोड़ी फिर कमाल करती है.
    •    सिनेमैटोग्राफ़ी खूबसूरत और दौर की मांग के अनुरूप.
    •    फातिमा सना शेख ने कठिन किरदार को सहजता और भावनात्मक सूक्ष्मता के साथ निभाया है.
    •    विजय वर्मा हर फ्रेम में ईमानदार और प्रभावी नजर आते हैं.
    •    निर्देशक विभु पुरी आज के आधुनिक समय के शख्स होकर भी इस बीते दौर की कहानी को चुनते हैं और जुनून, नफासत व बारीकी से निर्देशित करते हैं उनकी तारीफ जरूरी है.

अंतिम बात

‘गुस्ताख इश्क' वो सिनेमा है जो आज के तड़क-भड़क और मसाला फिल्मों के दौर में रूह के लिए ठंडक जैसा एहसास देता है. ऐसी कहानियों पर निर्माता जोखिम लेने से कतराते हैं, और इसलिए मनीष मल्होत्रा की हिम्मत सलाम के काबिल है कि उन्होंने इस खूबसूरत और रूहानी दुनिया को फिर बड़े पर्दे पर जिंदा किया. यह फ़िल्म याद दिलाती है कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं एक तहजीब और मोहब्बत की धड़कन भी है, जिसे हमेशा जिंदा रहना चाहिए.

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