हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम इतिहास का एक और उजला पन्ना आज हमेशा के लिए बंद हो गया. दिग्गज अभिनेत्री कामिनी कौशल का निधन हो गया. कुछ मिनट पहले आई इस दुखद खबर ने फिल्म जगत, उनके प्रशंसकों और पुराने हिंदी सिनेमा के चाहने वालों को दुखी कर दिया है. लाहौर की एक साधारण लड़की से लेकर कान फिल्म फेस्टिवल में भारत का परचम लहराने वाली नायिका बनने तक का उनका सफर किसी क्लासिक फिल्म जैसा खूबसूरत रहा है. उनकी मुस्कान, उनकी गरिमा और उनकी एक्टिंग, तीनों पीढ़ियों के सिनेप्रेमियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे.
कान में भारत की पहली गोल्डन पाम विनर एक्ट्रेस
कामिनी कौशल का जन्म 25 फरवरी 1927 को लाहौर में हुआ था. कॉलेज में रेडियो नाटक करती इस प्रतिभाशाली लड़की को 1945 में चेतन आनंद ने पहली बार देखा और अपनी फिल्म ‘नीचा नगर' की एक्ट्रेस बना लिया. भाग्य देखिए ये उनकी पहली ही फिल्म थी और वो सीधे इतिहास बन गई. 1946 में कान्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘नीचा नगर' को गोल्डन पाम पुरस्कार मिला. जो आज भी इंडियन फिल्मों के लिए बड़ा इंटरनेशनल सम्मान माना जाता है. कामिनी कौशल रातों रात हर बड़े डायरेक्टर की पहली पसंद बन गईं. अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद जैसे दिग्गज सितारों के साथ उन्होंने एक से बढ़कर एक यादगार फिल्में कीं. 1956 में ‘बिराज बहू' के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.
90 की उम्र में भी कैमरे के लिए तैयार
कामिनी कौशल की सबसे अनोखी बात यही थी कि वो उम्र के किसी भी पड़ाव पर पीछे नहीं हटीं. 1946 से शुरू हुआ उनका सफर 90 साल की उम्र तक चलता रहा. ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
• ‘लागा चुनरी में दाग' में उन्होंने अभिषेक बच्चन की दादी का किरदार निभाया
• ‘चेन्नई एक्सप्रेस' में वो शाहरुख खान की प्यारी दादी बनीं
• ‘कबीर सिंह' में शाहिद कपूर की दादी के किरदार ने उन्हें फिर एक बार अवॉर्ड तक पहुंचा दिया.