बांग्ला के प्रसिद्ध अभिनेता प्रोसेनजीत चटर्जी, फिल्मकार श्रीजीत मुखर्जी और अभिनेता राहुल बोस ने प्रख्यात फिल्मकार बुद्धदेब दासगुप्ता (Buddhadeb Dasgupta) के निधन पर बृहस्पतिवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता 77 वर्षीय निर्देशक पिछले कुछ समय से गुर्दे से संबंधित समस्याओं से जूझ रहे थे. उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि बृहस्पतिवार सुबह यहां अपने आवास में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया. बुद्धदेब दासगुप्ता (Buddhadeb Dasgupta) ने अपने करियर की शुरुआत एक कॉलेज में लेक्चरर के तौर पर की थी. बाद में कलकत्ता फिल्म सोसाइटी में सदस्य के तौर पर नामांकन के बाद वह 1970 के दशक में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उतरे.
बुद्धदेब दासगुप्ता (Buddhadeb Dasgupta) ने अपनी पहली फीचर फिल्म ‘‘दूरात्वा” 1978 में बनाई थी और एक कवि-संगीतकार-निर्देशक के तौर पर अपनी छाप छोड़ी थी. उससे पहले, उन्होंने लघु फिल्म ‘समायर काचे' बनाई थी. उनके निर्देशन में बनीं कुछ प्रसिद्ध फिल्मों में ‘नीम अन्नपूर्णा', ‘गृहजुद्ध', ‘बाघ बहादुर', ‘तहादेर कथा',‘चाराचर', ‘लाल दर्जा', ‘उत्तरा', ‘स्वपनेर दिन', ‘कालपुरुष' और ‘जनाला' शामिल है. उन्होंने ‘अंधी गली' और ‘अनवर का अजब किस्सा' जैसी हिंदी फिल्मों का भी निर्देशन किया.
फिल्मकार के साथ 2004 की ड्रामा फिल्म “स्वपनेर दिन'' और 2007 में आई “आमी, यासिन आर अमार मधुबाला” में काम कर चुके चटर्जी ने ट्विटर पर एक भावुक नोट लिखा. अभिनेता ने कहा कि वह दासगुप्ता के निधन से बहुत दुखी हैं और उन्हें न सिर्फ भारतीय सिनेमा में बल्कि “अंतरराष्ट्रीय फिल्म जगत” में भी “चमकते नाम” के तौर पर याद किया. चटर्जी ने बांग्ला में ट्वीट किया, “सौभाग्य से, मुझे उनके साथ दो फिल्में करने का मौका मिला और मैं कई फिल्मोत्सवों में उनके साथ गया यह जानने के लिए उनकी सिनेमा की अन्य शैलियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना सराहा जाता है..बुद्ध दा बेहतरीन इंसान थे... अपने काम के जरिए हमेशा हमारे साथ रहें.”
मुखर्जी ने कहा कि दासगुप्ता की फिल्मों ने उनकी सिनेमाई स्मृति को आकार दिया है और उनकी त्रुटिहीन कहानी कहने की कला ने एक मजबूत प्रभाव छोड़ा है. मुखर्जी को खासतौर पर दासगुप्ता की दो फिल्में - 1982 की “गृहजुद्ध” जिसकी पृष्ठभूमि 1970 के दशक के बंगाल में नक्सली आंदोलन की थी और 1989 की ड्रामा फिल्म “बाघ बहादुर'' याद है जो ऐसे शख्स की कहानी थी जो खुद को एक बाघ के तौर पर चित्रित करता है और गांव में नृत्य करता है. मुखर्जी ने लिखा,“यहां तक कि उनकी आखिरी फिल्म ‘उरोजहाज' के हर फ्रेम में उनकी विशिष्टता एवं कविता की झलक थी। अलविदा, स्मृतियां गढ़ने वाले.''
फिल्म में नडजर आए पारनो मित्रा ने भी ट्वीट किया, “आपके साथ ‘उरोजहाज' में काम करना सम्मान की बात है.” अभिनेत्री सुदीप्ता चौधरी ने कहा कि उनका सौभाग्य था कि वह फिल्मकार के साथ दो फिल्मों - “मोंदो मेयर उपाख्यान” और “कालपुरुष'' में काम कर पाईं. इन फिल्मों में मिथुन चक्रवर्ती और राहुल बोस भी नजर आए थे. बोस ने इंस्टाग्राम पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं और “कालपुरुष” को अपने करियर की सबसे संतोषजनक फिल्म बताया. अभिनेता ने कहा कि दासगुप्ता, “आधे कवि, आधे फिल्मकार थे” जिसकी झलक उनके सिनेमा में मिलती थी.
अभिनेता ने फिल्मकार को संवेदनशील, भावुक और “हास्य की शरारती भावना'' से पूर्ण बताया और कहा कि वह शूटिंग तथा विभिन्न फिल्मोत्सवों में उनके साथ यात्रा के वक्त बिताए गए वक्त को बहुत याद करेंगे. फिल्म निर्माता एवं पश्चिम बंगाल के विधायक राज चक्रवर्ती ने दासगुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए लिखा, “कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मानों को पाने वाले, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं प्रख्यात कवि बुद्धदेब दासगुप्ता का निधन हो गया। उनके परिवार एवं मित्रों के प्रति हार्दिक संवेदनाएं.”
बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी जिन्होंने दासगुप्ता के साथ “अनवर का अजब किस्सा'' में काम किया था, कहा कि फिल्मकार के साथ उनका “बहुत शानदार एवं स्नेहपूर्ण संबंध” था.
अभिनेता ने कहा, “उनके साथ काम करना सीखने का शानदार अवसर था. वह सिनेमा के मास्टर थे. मुझे याद है कि हम सिनेमा के बारे में बहुत बातें करते थे. यह हम सबके लिए बहुत दुख का दिन है लेकिन उनका सिनेमा हमेशा हमारे बीच जीवित रहेगा.'' दासगुप्ता के परिवार में उनकी पत्नी और पहले विवाह से दो बेटियां हैं.