धुरंधर की राजनीति से सहमत नहीं थे ऋतिक रोशन, अब फिल्म के एक्टर बोले- आप 26/11 हमले से इनकार नहीं कर सकते

धुरंधर में नजर आने वाले एक्टर दानिश पंडोर ने ऋतिक रोशन के रणवीर सिंह की फिल्म के रिव्यू पर अपना रिएक्शन दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह आदित्य धर की फिल्म में राजनीति से सहमत नहीं हैं.

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धुरंधर एक्टर ने ऋतिक रोशन को दिया जवाब
नई दिल्ली:

धुरंधर में उजैर बलोच का किरदार निभाने वाले एक्टर दानिश पंडोर वह पहले एक्टर हैं, जिन्होंने ऋतिक रोशन के फिल्म को दिए रिव्यू में राजनीति से सहमत ना होने की बात पर रिएक्शन दिया है. इंडिया टीवी को दिए इंटरव्यू में दानिश ने कहा कि वह उन फैक्ट से इनकार नहीं कर सकते, जिस पर फिल्म आधारित है. जो लोग नहीं जानते उन्हें बता दें कि हाल ही में ऋतिक रोशन ने धुरंधर का रिव्यू करते हुए कहा था कि वह फिल्म की राजनीति से सहमत नहीं हैं. लेकिन उन्हें एक्टिंग काफी पसंद आई.

26/11 पर धुरंधर एक्टर ने कही ये बात

दानिश ने कहा, “यह बहुत सब्जेक्टिव है. कुछ चीजें ऐसी होंगी, जो आपको पसंद होंगी और मुझे नहीं, और इसका उल्टा भी हो सकता है. जहां तक पॉलिटिकल पहलू की बात है, ये सभी रिसर्च पर आधारित बातें हैं. अगर आप 26/11 हमले को भी ध्यान में रखें, तो आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह हुआ था. हैंडलर्स और आतंकवादियों के वॉइस नोट्स स्क्रीन पर चलाए गए थे. यह सच में आपको रोंगटे खड़े कर देता है और साथ ही, एक इंसान के तौर पर आपको निराश भी करता है कि उन्होंने आखिर क्या किया है.”

रणवीर सिंह के लिए मुश्किल था धुरंधर का ये सीन

आगे उन्होंने कहा, "अंदर बहुत सारे बंधक थे, और जब सब कुछ मीडिया के नजरिए से सामने आ रहा था, जैसा कि हम उस समय देख रहे थे, तो आप सच में यह महसूस नहीं कर सकते थे कि वे लोग किस दौर से गुजर रहे थे. लेकिन बस वह वॉयस नोट जो स्क्रीन पर दिखाया गया है, वह आपको तुरंत उनके प्रति सहानुभूति महसूस कराता है. और क्या होता अगर आप उस समय वहां होते? सहानुभूति महसूस करना बहुत जरूरी है." आगे उन्होंने बताया कि जब सीन खत्म हुआ तो रणवीर सिंह को इस इमोशनल सीन को शूट करने में बहुत मुश्किल हुआ.

ऋतिक रोशन ने किया था धुरंधर का रिव्यू

बता दें कि ऋतिक रोशन ने हाल ही में धुरंधर का रिव्यू करते हुए लिखा, "मुझे सिनेमा पसंद है, मुझे ऐसे लोग पसंद हैं जो किसी भंवर में फंस जाते हैं और कहानी को कंट्रोल करने देते हैं, उन्हें घुमाते हैं, हिलाते हैं जब तक कि वह जो कहना चाहते हैं वह उनके अंदर से निकलकर स्क्रीन पर न आ जाए. धुरंधर इसका एक उदाहरण है. कहानी कहने का तरीका बहुत पसंद आया. यह सिनेमा है. मैं इसकी पॉलिटिक्स से सहमत नहीं हो सकता, और इस बात पर बहस कर सकता हूं कि दुनिया के नागरिक होने के नाते हम फिल्ममेकर्स को क्या जिम्मेदारियां उठानी चाहिए. फिर भी, मैं इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि सिनेमा के एक स्टूडेंट के तौर पर मुझे यह कितना पसंद आया और इससे मैंने क्या सीखा. कमाल है."

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