धर्मेंद्र-अमिताभ की आइकॉनिक फिल्म, विलेन की इस एक डायलॉग से चमक गई थी किस्मत, रातों-रात बन गया था स्टार

इस फिल्म का नाम सुनते ही सबसे पहले इसका विलेन ही जेहन में आता है, जो बहुत ही खतरनाक है.

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धर्मेंद्र-अमिताभ की फिल्म से विलेन की चमक गई थी किस्मत
नई दिल्ली:

आज का बॉलीवुड हीरो से ज्यादा विलेन को अहमियत दे रहा है. इसलिए बतौर एक्टर काम कर चुके स्टार्स अब फिल्मों में विलेन बनने से कतरा नहीं रहे हैं. कई फ्लॉप एक्टर्स हैं, जिनकी विलेन बनते ही किस्मत चमक गई है, लेकिन यहां बात करेंगे धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन की हिट जोड़ी की इस ब्लॉकबस्टर फिल्म के धांसू विलेन की, जिसे सिनेप्रेमी यकीनन आज भी नहीं भूले होंगे. इस फिल्म में इस एक्टर ने बतौर विलेन ऐसे-ऐसे डायलॉग बोले, जो आज भी याद किए जाते हैं. इस खलनायक रोल इस एक्टर की ऐसी किस्मत चमकी कि लोग उसे ताउम्र नहीं भूलने वाले हैं.

क्या था वो आइकॉनिक डायलॉग

बात कर रहे हैं साल 1975 में रिलीज हुई आइकॉनिक फिल्म शोले और उसके दमदार विलेन गब्बर की, जिसे अमजद खान ने प्ले किया था. वैसे तो इस फिल्म का एक-एक डायलॉग खास और यादगार है, लेकिन बतौर विलेन अमजद खान के डायलॉग ने पर्दे पर आग लगा दी थी. गब्बर ने फिल्म में कई डायलॉग बोले, 'जैसे जो डर गया, समझो मर गया, तेरा क्या हो कालिया?, अरे ओ सांभा कितने आदमी थे? जो आज भी हिट हैं. इन सबके बीच गब्बर का एक और डायलॉग है, जो अमर हो चुका है और वो है, 'पचास-पचास कोस दूर तक, जब कोई बच्चा रोता है, तो उसकी मां कहती है, सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा'. अमजद खान का यह डायलॉग बताता है कि फिल्म शोले में गब्बर का रोल कितना खतरनाक था.

हिंदी सिनेमा में अमर हुई फिल्म

फिल्म शोले साल 1975 में रिलीज हुई थी. फिल्म की कहानी और डायलॉग सलीम खान और जावेद अख्तर ने मिलकर लिखे थे और इस फिल्म का निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था. पहले इस फिल्म की कहानी मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा के पास गई थी, लेकिन किसी कारणवश दोनों यह फिल्म नहीं कर पाए और फिर आखिर में चार लाइन की स्क्रिप्ट लिखी गई शोले को रमेश सिप्पी इतना शानदार बना दिया, जो आज हिंदी सिनेमा की पहचान बन चुकी है. फिल्म में धर्मेंद्र ने  वीरू और अमिताभ बच्चन ने जय की भूमिका निभाई थी. अब जय-वीरू की यह जोड़ी टूट चुकी है, क्योंकि वीरू (धर्मेंद्र) अब हमारे बीच नहीं रहे हैं.


 

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