दादामुनी के 76वें जन्मदिन पर हुआ कुछ ऐसा कि मरते दम तक नहीं मनाया जश्न, जानते हैं क्या थी वजह

दादामुनी यानि अशोक कुमार ने अपने 76वें बर्थडे के बाद अपना जन्मदिन मरते दम तक सेलिब्रेट नहीं किया था.

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नई दिल्ली:

दादामुनी यानि अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर में हुआ था. तीन भाइयों में सबसे बड़े थे तो दादा कहलाने लगे। बंगाली में मोनी का अर्थ गहना होता है तो दादामोनी होते-होते फिल्मों के दादा मुनी हो गए. वैसे जन्म के समय नाम कुमुदलाल कुंजीलाल गांगुली था. मल्टी टैलेंटेड थे अशोक कुमार. अभिनेता ही नहीं बल्कि ज्योतिष के भी अच्छे जानकार थे. हिंदी फिल्मों के पहले सुपर स्टार और पहली बार एंटी हीरो रोल प्ले करने वाले शख्स भी. फिल्मों में अचानक ही एंट्री हुई. टेक्निकल क्षेत्र में आगे बढ़ने की ललक थी लेकिन फिर एक्सिडेंटली हीरो बन गए.

उपन्यासकार, लेखक सआदत हसन मंटो इनके दोस्तों में शुमार थे. 'काली सलवार', 'ठंडा गोश्त' जैसी कहानियां लिखने वाले मंटो अशोक कुमार को सही मायने में मुनि मानते थे. यानि इस एक्टर का कैरेक्टर हमेशा बेदाग रहा. तो शुरुआत पाक साफ कैरेक्टर का प्रमाण देने वाले मंटो के 'मीना बाजार' से. इसमें उन्होंने एक जगह लिखा है, एक बोल्ड महिला अशोक कुमार को अपने घर ले गई, ताकि वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर सकें. लेकिन वह इतना दृढ़ था कि महिला को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. उसने उससे कहा, 'मैं तो बस तुम्हें परख रही थी, तुम मेरे भाई जैसे हो!'

मंटो के मुताबिक अशोक फ्लर्ट नहीं थे. वो भी तब जब सैकड़ों युवतियां उनसे प्यार करती हों उन्हें हजारों की तादाद में खत लिखती हों. फिल्मों पर एंट्री आकस्मिक थी. उनकी जीवनी 'दादामोनी द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ अशोक कुमार' में इसका जिक्र है. उन्हें 1936 की फिल्म 'जीवन नैया' में मुख्य भूमिका में अचानक ही कास्ट किया गया. दरअसल, मेन एक्टर लापता हो गया था. एक्ट्रेस थीं देविका रानी जो उस समय बिंदास ड्रैगन लेडी के तौर पर जानी जाती थीं. वो स्मोकिंग, ड्रिंकिंग सब करती थीं। खैर डर कर हिमांशु राय की फिल्म में काम किया जो हिट हो गई. इसके बाद 'अछूत कन्या' की जो ब्लॉकबस्टर रही. इसके बाद तो जो सफर शुरू हुआ वो बहुत दिनों तक रुका ही नहीं.

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अगले छह दशकों में, उन्होंने पुलिस वाले और चोर, किस्मत , महल , परिणीता , कानून , गुमराह , चलती का नाम गाड़ी , आशीर्वाद , ममता , ज्वेल थीफ , खूबसूरत और खट्टा मीठा सहित अनेक फिल्मों में जबरदस्त कैरेक्टर प्ले किए. नतीजतन कई अवॉर्ड्स अपने नाम किए. 1988 में मिला दादा साहब फाल्के भी इसमें शामिल है. इससे सालों पहले उन्हें पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था.

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दादामुनी की बायोग्राफी लिखने वाले नबेंदु घोष लिखते हैं कि अशोक कुमार की दुनिया बहुत बड़ी थी- वह एक आकर्षक वक्ता, संरक्षक, होम्योपैथ, ज्योतिष, चित्रकार, भाषाविद्, कवि और सबसे बढ़कर एक वफादार दोस्त और समर्पित पति और पिता थे. फैमिली मैन थे. घर परिवार से बहुत प्रेम था शायद इसलिए 1987 से जन्मदिन मनाना भी बंद कर दिया था. गहरा धक्का पहुंचा था. प्यारा छोटा भाई किशोर कुमार दुनिया से विदा हो गया था. दुख तो इस बात का था कि मौत ने भी दिन 13 अक्टूबर ही चुना था. दादा मुनी इस गम के साथ 10 दिसंबर 2001 को दुनिया से विदा हो गए.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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