जिसने Helen को बनाया स्टार, उसी ने खाया लोगों का फेंका खाना, हीरो-हीरोइन से ज्यादा फीस वाली एक्ट्रेस का अंत रहा खौफनाक

Cuckoo More Tragic Life: कुक्कु मोरे बॉलीवुड की ऐसी एक्ट्रेस थीं, जिनकी शोहरत का जलवा पूरे इंडस्ट्री पर छाया था. लेकिन किस्मत ने ऐसी करवट पलटी कि आखिरी दिनों में उन्हें लोगों के फेंके और बचा खुचा खाना खाकर काम चलाना पड़ा.

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Cuckoo More Tragic Life: हेलेन नहीं ये थी बॉलीवुड की पहली ग्लैमर गर्ल, हीरो हीरोइन से कम नहीं थी फीस
नई दिल्ली:

Cuckoo More Tragic Life: बॉलीवुड में स्टारडम का मतलब है लाइट्स, कैमरा और ढेर सारा प्यार. लेकिन इसी दुनिया का एक काला सच भी है. जहां कई सितारे चमकते-चमकते अचानक बुझ जाते हैं. ऐसी ही एक कहानी है कुक्कु मोरे की. आइटम डांस की बात होती है तो शायद हेलेन की याद सबसे पहले आती है. पर कुक्कु मोरे वो हसीना थीं जिन्होंने हेलन को भी इंड्स्ट्री में स्थापित होने में मदद की. हिंदी सिनेमा की पहली ग्लैमर गर्ल, जिनकी जिंदगी किसी फिल्म से कम नहीं रही. पर्दे पर उनकी एंट्री होते ही लोग सीटियां बजाने लगते थे, थिएटर तालियों से गूंज उठता था और मेकर्स उनकी एक झलक के लिए लाइन लगाते थे. लेकिन किस्मत ने ऐसा पलटा मारा कि वही कुक्कु जो कभी तीन-तीन कारों में घूमती थीं, अपने आखिरी दिनों में खाने के लिए भी तरस गईं.

बॉलीवुड की पहली डांसिंग क्वीन

1940-50 के दशक का दौर था और बॉलीवुड में Cuckoo More का जलवा सिर चढ़कर बोलता था. उन्होंने 1946 में अरब का सितारा से शुरुआत की और बस फिर क्या. हर फिल्म में उनके डांस की मांग बढ़ती चली गई. एक वक्त ऐसा आया जब उस दौर में कुक्कु एक गाने के लिए 6,000 रुपये लेती थीं. सोचिए जिस जमाने में बड़े एक्टर्स भी इतनी कमाई का सपना देखते थे. कुक्कु ये रकम सिर्फ एक परफॉर्मेंस में कमा लेती थीं.

ग्लैमर की दुनिया की सबसे महंगी डांसर

उनका स्टाइल, उनका कॉन्फिडेंस और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस, सब कुछ सुपरस्टार जैसा था. अंदाज, बरसात, पतंगा, अनोखी अदा…जिस भी फिल्म में कुक्कु आईं, गाना हिट होना तय था. उनके पास तीन लग्जरी कारें थीं, जिनमें से एक सिर्फ उनके पालतू जानवरों के लिए रहती थी. ग्लैमर उनके हर कदम में झलकता था.

किस्मत ने मारी पलटी

लेकिन फिल्म इंडस्ट्री का नियम साफ है. चमकती चीजें ज्यादा देर चमकती नहीं. 1963 के बाद आइटम नंबरों का स्टाइल बदला और कुक्कु के पास काम आना बंद हो गया. धीरे-धीरे पैसा खत्म हुआ, पहचान मिटने लगी और हालात इतने खराब हो गए कि वो सब्जी मंडी जाती थीं और लोगों के फेंके पत्ते, डंठल इकट्ठा करके खाना बनाती थीं. कैंसर से उनकी हालत और बिगड़ी. दवाइयों के पैसे नहीं थे, खाना मुश्किल से मिलता था. आखिरकार 30 सितंबर 1981 को कुक्कु मोरे ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया बिलकुल चुपचाप, अकेले और बेहद दर्द में.

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