दिल्ली हाई कोर्ट में गुरुवार को हुई सुनवाई ने उद्योगपति संजय कपूर की संपत्ति को लेकर चल रहे विवाद में नई जटिलता जोड़ दी है. उनकी तीसरी पत्नी प्रिया सचदेव द्वारा प्रस्तुत 21 मार्च 2025 की कथित वसीयत अब और अधिक संदिग्ध होती जा रही है, क्योंकि इसमें संजय कपूर की पूरी निजी संपत्ति केवल प्रिया सचदेव को सौंपे जाने का दावा है- जबकि उनके बच्चे सामायरा और किआन इसमें पूरी तरह से उपेक्षित हैं. इस केस का सबसे महत्वपूर्ण पात्र हैं- श्रद्धा सूरी मारवाह, एक प्रतिष्ठित उद्योगपति, जो इस वसीयत की कथित कार्यपालक (वसीयत का पालन करने वाली अधिकारी) बताई गई हैं.
श्रद्धा सूरी ने कोर्ट में कहा कि:
• उन्हें 14 जून 2025 को दिनेश अग्रवाल नाम के व्यक्ति से ईमेल मिला
• उसी ईमेल में उन्हें बताया गया कि वे वसीयत की कार्यपालक हैं
• बाद में अग्रवाल ने कहा कि पहले उन्होंने गलती से ट्रस्ट से जुड़ा दस्तावेज भेज दिया था और फिर उसी दिन वसीयत भेजी
यह प्रश्न अब और गहरा हो गया है कि यदि श्रद्धा सूरी वाकई कार्यपालक थीं, तो संजय कपूर ने अपने जीवन में कभी उन्हें इसकी जानकारी क्यों नहीं दी?
इसके अतिरिक्त, दस्तावेज़ में कई गंभीर कमियां पाई गईं:
• वसीयत न रजिस्ट्रीकृत है, न प्रमाणित (नोटरीकृत)
• बच्चों के नाम, पते और अन्य विवरणों में चौंकाने वाली त्रुटियां
• ईमेल में संलग्न दस्तावेज़ों की डिजिटल प्रामाणिकता भी संदिग्ध
• श्रद्धा सूरी ने स्वीकार किया कि उन्हें स्वयं स्थिति की पूरी जानकारी नहीं थी
सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि प्रिया सचदेव स्वयं ने कहा कि वह मात्र 'नामित व्यक्ति' हैं- वैधानिक वारिस नहीं. यानी उनके पास संपत्ति पर स्वामित्व का कानूनी अधिकार नहीं है.
कानूनी जानकारों के अनुसार, यदि वसीयत को अमान्य ठहराया गया, तो संजय कपूर की संपत्ति सभी प्रथम श्रेणी उत्तराधिकारियों- अर्थात उनकी मां और उनके बच्चों में समान रूप से विभाजित होगी. लगातार बदलते बयान, प्रक्रियागत खामियां और दस्तावेज की संदिग्ध उत्पत्ति- यह विवाद अब मात्र पारिवारिक टकराव नहीं, बल्कि विरासत कानून की एक महत्वपूर्ण मिसाल बन चुका है.