मौत, भूख और संघर्ष को दी मात, जंग से बचकर भारत पहुंची ये लड़की बनी बॉलीवुड की पहली 'ग्लैमर क्वीन'

बॉलीवुड की दुनिया में कई कलाकार आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जिनकी चमक कई पीढ़ियों तक कायम रहती है. ऐसा ही एक नाम है इस एक्ट्रेस का.

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बर्मा से आई ये लड़की बनी बॉलीवुड की क्वीन
नई दिल्ली:

बॉलीवुड की दुनिया में कई कलाकार आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जिनकी चमक कई पीढ़ियों तक कायम रहती है. उन्हीं में से एक नाम है हेलन का. 50 और 70 के दशक के बीच हेलन की स्क्रीन पर मौजूदगी किसी भी फिल्म को खास बना देती थी. उस वक्त उनके डांस नंबरों के शामिल होने का मतलब गाने का चार्टबस्टर होना तय माना जाता था. हालांकि, इस चमकदार सफर के पीछे एक लंबी और दर्दनाक कहानी छिपी है. हेलन कैसे बर्मा से भारत तक पहुंचीं, कैसे फिल्मों में कदम रखा, और कैसे दो दशक तक बॉक्स ऑफिस की 'ग्लैमर क्वीन' बनी रहीं, यह सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.

हेलन का जन्म 21 नवंबर 1938 को बर्मा (अब म्यांमार) के रंगून में हुआ था. उनका परिवार एक साधारण जीवन जी रहा था, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध ने उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल दी. युद्ध के दौरान उनके पिता की मौत हो गई और हालात इतने खराब हो गए कि परिवार को बर्मा छोड़कर पैदल ही भारत के लिए निकलना पड़ा. रास्ता बेहद कठिन था. खाने के पैसे नहीं थे, मां गर्भवती थीं, और बीमारी की वजह से उनका गर्भपात हो गया. कई दिनों तक जंगलों, गांवों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए हेलन का परिवार असम पहुंचा. इतनी कठिनाइयों के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और परिवार को कभी टूटने नहीं दिया.

भारत आने के बाद भी जीवन आसान नहीं था. आर्थिक तंगी के कारण हेलन को परिवार का सहारा बनना पड़ा. इसके लिए उन्होंने फिल्मों में बैकग्राउंड डांसर के तौर पर काम शुरू किया. 1951 में 'शबिस्तान' फिल्म में उन्होंने ग्रुप डांसर के रूप में स्क्रीन पर कदम रखा. शुरुआत छोटी थी, लेकिन सपने बड़े थे. धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और 1958 में फिल्म 'हावड़ा ब्रिज' के गाने 'मेरा नाम चिन चिन चू' ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. इस गाने में हेलन की एनर्जी और स्टाइल ने उन्हें अलग ही पहचान दिलाई.

यहीं से शुरू हुआ वह दौर, जब हेलन नाम अपने आप में हिट गानों की गारंटी बन गया. 60 और 70 के दशक में लगभग हर बड़ी फिल्म में उनका एक स्पेशल डांस नंबर होता था, जिसे देखने के लिए दर्शक बेसब्र रहते थे. उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि लोग फिल्मों में सिर्फ उनका गाना देखने के लिए टिकट खरीद लेते थे. इसी वजह से उन्हें दो दशकों तक बॉक्स ऑफिस की 'ग्लैमर क्वीन' कहा गया. उनके स्टेप्स और उनका अंदाज इतना अनोखा था कि कोरियोग्राफर भी हर गाना उनके हिसाब से खास तरीके से डिजाइन करते थे.

हेलन ने सिर्फ ग्लैमर नहीं जोड़ा, बल्कि फिल्मों को एक नया स्टाइल और नई पहचान दी. उनके गाने आज भी लोगों के जुबां पर हैं, जिनमें 'पिया तू अब तो आजा,' 'उई मां उई मां यह क्या हो गया,' 'गुमनाम है कोई,' 'आज की रात,' और 'ओ हसीना जुल्फों वाली' जैसे नाम शामिल हैं. हेलन सिर्फ एक डांसर नहीं थीं. 70 के दशक में महेश भट्ट ने 'लहू के दो रंग' जैसी भावनात्मक फिल्म में उन्हें एक गंभीर किरदार निभाने का मौका दिया. इस फिल्म के जरिए उन्होंने डांस नंबर की छवि को तोड़ा और साबित किया कि वह गंभीर किरदार भी निभा सकती हैं. इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला.

हेलन को उनके योगदान के लिए 1999 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला, और 2009 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. उन्होंने अपने करियर में 500 से ज्यादा फिल्मों में काम किया.

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