बॉलीवुड की सबसे मनहूस फिल्म, थियेटर में आने से पहले हुई संजीव कुमार, गुरुदत्त और डायरेक्टर की मौत

‘मुगल-ए-आजम’ जैसी क्लासिक फिल्म रचने वाले डायरेक्टर के.आसिफ का सपना था लैला-मजनू की अमर प्रेमकथा को सिल्वर स्क्रीन पर उतारना. लेकिन ये सपना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया.

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सिनेमा सबसे दुखद अध्याय है ये
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नई दिल्ली:

हिंदी सिनेमा की दुनिया में अनगिनत यादगार कहानियां रची गईं, जिन्होंने दर्शकों को रोमांचित किया. कुछ फिल्में सदाबहार बनीं, तो कुछ बाजार में ठप्प हो गईं. लेकिन एक ऐसी फिल्म भी है जिसे हमेशा से अभिशापित माना जाता है. इसका नाम ‘लव एंड गॉड' है, जो 1986 में सिनेमाघरों में उतरी. दिलचस्प बात यह है कि इसकी शुरुआत 1963 में हुई थी, लेकिन इसे पूरा करने में पूरे 23 साल लग गए. इस दौरान फिल्म से जुड़े तीन प्रमुख लोग दुनिया छोड़ चुके थे दो एक्टर और एक डायरेक्टर.

गुरु दत्त के निधन से लगा झटका

‘मुगल-ए-आजम' जैसी क्लासिक फिल्म रचने वाले डायरेक्टर के.आसिफ का सपना था लैला-मजनू की अमर प्रेमकथा को सिल्वर स्क्रीन पर उतारना. 1960 के दशक में उन्होंने पटकथा तैयार की और उस समय के टॉप कलाकार गुरु दत्त को लीड रोल के लिए चुना. लेकिन शूटिंग की शुरुआत के महज कुछ महीनों बाद ही गुरु दत्त का निधन हो गया. बताया जाता है कि गहरे डिप्रेशन के चलते उन्होंने खुदकुशी की जिससे आसिफ का यह प्रोजेक्ट अधर में लटक गया.

निर्देशक के.आसिफ ने दुनिया को कहा अलविदा

1970 के दशक में के.आसिफ ने हिम्मत जुटाई और संजीव कुमार व निम्मी को लेकर काम फिर शुरू किया. वे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को साकार होते देख खुश थे. एक दिन संजीव कुमार उनसे मिलने घर पहुंचे. बातचीत के दौरान ही आसिफ को सांस फूलने लगी. 1971 में संजीव की गोद में ही उन्होंने अंतिम सांस ली. यह घटना फिल्म के लिए एक और बड़ा झटका साबित हुई.

संजीव कुमार भी नहीं रहे

संजीव कुमार ने हार न मानी. उन्होंने फंडिंग की व्यवस्था की और बाकी शूटिंग को पूरा करने की कोशिश की. लेकिन भाग्य ने फिर धोखा दिया. 6 नवंबर 1985 को हार्टअटैक से उनकी मौत हो गई. इन तीनों की असामयिक विदाई के बाद मई 1986 में फिल्म रिलीज हुई. दुर्भाग्य से, यह दर्शकों को पसंद न आई और बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नाकाम रही.

के.आसिफ की कोशिश थी कि ‘लव एंड गॉड' भी ‘मुगल-ए-आजम' की तरह इतिहास रचे, लेकिन लगातार मौतों ने इसे हमेशा के लिए श्रापित बना दिया. आज भी सिनेमा प्रेमी इसे एक दुखद अध्याय के रूप में याद करते हैं.

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