1930 के दशक तक भारत में एक्शन फिल्मों की शुरुआत नहीं हुई थी. जबकि हॉलीवुड में 1920 के दशक से फिल्मों में एक्शन की शुरुआत हो चुकी थी. वहीं भारतीय सिनेमा अभी भी देश की संस्कृति में ही डूबा हुआ था. एक्शन फिल्मों के कॉन्सेप्ट की शुरुआत स्टंट फिल्मों से हुई...और अगर उन कुछ शुरुआती नामों की बात करें जिन्होंने एक्शन सिनेमा में सक्सेस पाई तो वे भारत से नहीं थे...इतना ही नहीं इनमें केवल पुरुष नहीं एक महिला का नाम था.
बॉलीवुड की पहली एक्शन स्टार - फियरलेस नादिया
1935 में, वाडिया मूवीटोन के फाउंडर जेबीएच वाडिया ने एक्शन फिल्म हंटरवाली रिलीज की. इसमें भारत में बसी मैरी एन इवांस नाम की एक ऑस्ट्रेलियन एक्ट्रेस ने काम किया. मैरी ने स्क्रीन के लिए नादिया नाम लिया और फिल्म में उन्हें फियरलेस नादिया के तौर पर पेश किया गया. अपने जबरदस्त एक्शन सीन और नादिया की स्क्रीन प्रेजेंस के साथ यह फिल्म सुपरहिट रही और सिल्वर जुबली हासिल की. इस तरह एक स्टंट हीरोइन के रूप में नादिया का करियर शुरू हुआ और अगले एक दशक तक वह भारत की सबसे बड़ी एक्शन स्टार रहीं, उन्होंने डायमंड क्वीन (1940), जंगल प्रिंसेस (1942), हंटरवाली की बेटी (1943), और धूमकेतु जैसी हिट फिल्मों में काम किया (1949).
मैरी एन इवांस कैसे बनीं फियरलेस नादिया
नादिया का जन्म 1908 में पर्थ में हुआ था. उनके पिता ब्रिटिश सेना में एक स्वयंसेवक थे. नादिया के जन्म के बाद उन्हें भारत ट्रांसफर कर दिया गया. नादिया 1913 में भारत आ गईं. 1915 में अपने पिता की मृत्यु के बाद वह पेशावर चली गईं. यहां मैरी ने घुड़सवारी सीखी, शिकार, जिम्नास्टिक और निशानेबाजी की. 1920 के दशक में वह मुंबई लौट गईं और वहां बैले सीखा. जेबीएच वाडिया की फिल्म देश दीपक में एक छोटी सी भूमिका में हाथ आजमाने से पहले मैरी ने 20 साल की उम्र में एक थिएटर एक्टर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था. उनके छोटे रोल्स को इतना अच्छा रिएक्शन मिला कि वाडिया और उनके भाई होमी ने उन्हें एक लीड एक्ट्रेस के तौर पर लॉन्च करने का फैसला किया. इस तरह हंटरवाली से नादिया को लॉन्च किया गया.
उनके स्क्रीन नेम के पीछे की कहानी उस बात से मिलती है जो एक अर्मेनियाई ज्योतिषी ने एक बार उनसे कही थी. उसका कहना था कि उन्हें बहुत नाम मिलेगा लेकिन केवल तभी जब वह N से शुरू होने वाला नाम चुनें. उन्होंने नादिया चुना क्योंकि यह 'विदेशी' लगता था. नादिया ने एक इंटरव्यू में ये बात बताई थी.
शेरों के साथ नादिया के खतरनाक स्टंट
नादिया की फिल्में इसलिए चलीं क्योंकि वो खतरों के साथ शोमैनशिप भी बखूबी समझती थीं. वह अपने स्टंट खुद करने के लिए जानी जाती थीं और क्योंकि वह तलवारबाजी, घुड़सवारी और यहां तक कि डांस में भी ट्रेन्ड थीं इसलिए हर मामले में परफेक्ट थीं. 1942 की फिल्म 'जंगल प्रिंसेस' में उन्हें दो असल शेरों के साथ एक सीन करने के लिए कहा गया और नादिया ने ऐसा किया. गिरीश कर्नाड के साथ एक इंटरव्यू में, नादिया ने याद किया, “जंगल प्रिंसेस में मुझे शेर के साथ एक सीन करना था. बेशक मैंने मना कर दिया. मैं शेर के करीब नहीं जा रही हूं...लेकिन होमी ने शांति से कहा 'देखते हैं क्या होता है' और सर्कस में शेरों के पिंजरे में चले गए. तभी एक दुबली-पतली छोटी सर्कस की लड़की आई, पिंजरे में चली गई, और एक कटोरे में शेरों को दूध दिया. मैंने कहा 'ठीक है' मैं इसे करूंगी."