Babli Bouncer Review: फिल्म 'बबली बाउंसर' में तमन्ना भाटिया का दिखा अलग अवतार, छेड़ने वालों के छक्के छुड़ाते नजर आईं एक्ट्रेस 

राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने एक बार फिर अपनी कहानी का ऐसा विषय चुना है जो महिला प्रधान है और फ़िल्म का नाम है बबली बाउंसर।

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बबली बाउंसर रिलीज
नई दिल्ली:

राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने एक बार फिर अपनी कहानी का ऐसा विषय चुना है जो महिला प्रधान है और फ़िल्म का नाम है बबली बाउंसर. फिल्म की कहानी है हरियाणा के एक गांव की जहां के ज़्यादातर लड़के बॉडी बना कर क्लब में बाउंसर का काम करते हैं. उसी गांव में बबली नाम की एक लड़की है जो बिंदास है, फनी है, बहादुर है और ताकतवर भी है जो छेड़छाड़ करने वाले लड़कों को अकेले ही धूल चटा देती है. 10वीं में पांच बार फेल हो चुकी है. माता पिता शादी करना चाहते हैं मगर वो नही करना चाहती. इसलिए घर आए रिश्तों को किसी ने किसी तरह भगा देती है. अचानक एक लड़का उसे पसंद आ जाता है जिसके चक्कर में वो दिल्ली पहुंच जाती हैं और वहां जाकर एक क्लब की बाउंसर बन जाती है. उसके बाद क्या होता है, और कहानी किस मोड़ पर जाती है, उसके लिए आप फिल्म देखिए क्योंकि इसके आगे बताने से कहानी का मज़ा खत्म हो जाएगा. 

फिल्म में बबली की भूमिका में नजर आ रही हैं तमन्ना भाटिया. अब ये फिल्म ओटीटी पर रिलीज़ हो चुकी है. तमन्ना भाटिया ने साउथ से लेकर बॉलीवुड में कई प्रकार की भूमिकाएं निभाई हैं मगर ये रोल उनके लिए नया और अलग है. हरयाणवी लड़की की भूमिका निभाने के लिए उनकी मेहनत परदे पर नजर आती है. मुंबई में पली बढ़ी तमन्ना ने हरयाणवी भाषा के लहजे को ठीक से पकड़ा है. फिल्म में अभिषेक बजाज, साहिल वैद्य और सौरभ शुक्ला ने अपने अपने किरदारों के साथ इंसाफ किया है.

मधुर भंडारकर की ये फिल्म भले ही महिला प्रधान फिल्म हो मगर उन्होंने अपनी इस फिल्म में हर तरह के मसाले डालने की कोशिश की है. फिल्म के कई दृश्य आपको हंसाएंगे. कुछ इमोशनल सीन भी फिल्म में नजर आएंगे. लव का तड़का भी देखने को मिलेगा. नाइट लाइफ की झलक के साथ साथ क्लब में बाउंसर की जरूरत क्यों है, ये भी देखने को मिलेगा. फिल्म 2 घंटे की है. इसलिए ये फिल्म ड्रैग करती नजर नहीं आती है. 

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फिल्म बबली बाउंसर की सबसे खास बात ये है कि इसमें लड़कियों के लिए एक खास संदेश है और वो ये है कि लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए. यही वजह है कि फिल्म में बबली के पिता के किरदार को ऐसा गढ़ा गया है जो अपनी बेटी के साथ उसकी हर खुशी और हर फैसले में उसके साथ खड़ा है. महिला सशक्तिकरण की बात भारतीय पौराणिक कथाओं से लेकर भारतीय संस्कृति में कूट-कूट कर भारी है साथ ही सरकार ने भी महिला सशक्तिकरण पर काफ़ी ज़ोर दिया है ऐसे में ये फ़िल्म इसी संदेश को आगे बढ़ाती नज़र आती है.
 

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