सिर्फ कॉमेडियन ही नहीं थे असरानी, एक दिग्गज कलाकार भी थे

असरानी को दर्शक उनके कॉमेडी किरदारों की वजह से जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उन्होंने कई फिल्मों में संजीदा किरदार भी निभाए. वे पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट से अभिनय का कोर्स किए हुए अभिनेता थे.

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सिर्फ कॉमेडियन ही नहीं थे असरानी, एक दिग्गज कलाकार भी थे
नई दिल्ली:

असरानी को दर्शक उनके कॉमेडी किरदारों की वजह से जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उन्होंने कई फिल्मों में संजीदा किरदार भी निभाए. वे पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट से अभिनय का कोर्स किए हुए अभिनेता थे, इसलिए अभिनय का कोई भी रंग उनके लिए मुश्किल नहीं था. बहुत कम लोगों को मालूम है कि पर्दे पर मस्करी करने वाले अभिनेता असरानी ने 1977 में एक फिल्म का न केवल निर्माण किया बल्कि उसका निर्देशन भी किया, साथ ही मुख्य भूमिका भी निभाई. यह फिल्म एक अभिनेता के संघर्ष की कहानी कहती थी और कुछ उसी तर्ज़ पर बनी थी, जिस पर राज कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर' और गुरु दत्त ने ‘कागज़ के फूल' बनाई थी. इस फिल्म को व्यावसायिक सफलता तो नहीं मिली, लेकिन इसे समीक्षकों ने खूब सराहा.

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अगर बात करें अमिताभ बच्चन और जया भादुरी की फिल्म ‘अभिमान' की, तो वहां भी असरानी उस तरह के किरदार में नहीं थे, जैसे कि वे अपनी अन्य फिल्मों में कॉमेडी करते दिखते थे. इस फिल्म में वे एक सिंगर के मैनेजर की भूमिका में थे. एक और फिल्म जो मेरे ज़ेहन पर छाप छोड़ गई और जिसने असरानी की छवि को मेरे मन में बदल दिया, उसका नाम था ‘तपस्या'. इस फिल्म के हीरो थे परीक्षित साहनी और राखी ने असरानी की बड़ी बहन का किरदार निभाया था. असरानी इस फिल्म में संजीदा और गहराई वाले किरदार में थे, जो उनकी अन्य फिल्मों से बिल्कुल अलग था. यह फिल्म एक बड़ी बहन के त्याग और तपस्या की कहानी कहती थी और असरानी का किरदार हल्का-सा निगेटिव शेड लिए था. 1976 में आई इस फिल्म के निर्देशक थे अनिल गांगुली.

बहुत से लोगों को अमिताभ बच्चन और रेखा की फिल्म ‘ख़ून पसीना' भी याद होगी, लेकिन क्या यह याद है कि इस फिल्म में असरानी एक तरह से निगेटिव किरदार में थे? हालांकि इस किरदार की गहराई को केवल “निगेटिव” शब्द से नहीं मापा जा सकता, क्योंकि इसमें कई परतें थीं और हर परत को असरानी ने बखूबी निभाया. अमिताभ बच्चन को जहां “एंग्री यंग मैन” का तमगा मिला हुआ था, वहीं इस फिल्म में असरानी गुस्से में अमिताभ को मारने के लिए घूमते रहते हैं.

‘तपस्या' और ‘चला मुरारी हीरो बनने' जैसी फिल्में लीक से हटकर थीं, जबकि ‘ख़ून पसीना' एक मसाला फिल्म थी. इन सबके अलावा भी कई फिल्मों में निर्माताओं और निर्देशकों ने असरानी के हुनर पर भरोसा जताया और उन्हें अलग तरह के किरदार दिए, जिन्हें असरानी ने हमेशा की तरह पूरी ईमानदारी से निभाया. असरानी को आज की पीढ़ी शायद सिर्फ ‘अंग्रेज़ों के ज़माने का जेलर' वाले डायलॉग से जानती है, पर बतौर अभिनेता वे हर ज़माने और अभिनय के हर रंग के कलाकार रहे हैं.

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