महंगाई की चर्चा तो आप आए दिन करते ही होंगे. नया बजट पेश होना हो तो महंगाई की चर्चा. कोई नया फोन लॉन्च हो जाए तो महंगाई की चर्चा. सब्जी मंडी चले जाएं तो सब्जी के भाव की चिंता. इस तरह से ये महंगाई का टॉपिक जो है वो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से कुछ चिपक सा गया है. मतलब ना चाहते हुए भी हम इसे याद कर ही लेते हैं. अब आज हम आपको इसी महंगाई के और चेहरे से मिलवाते हैं. इसे आप अब देखेंगे तो शायद महंगाई लगे ही ना लेकिन 39 साल पहले इसका एक अलग ही जलवा था.
क्या थी वो चीज जिसने छुटा रखे थे सबके पसीने ?
जिस तरह आज फिल्म देखना और बाहर खाना खाना महंगे शौक की कैटेगिरी में आता है उसी तरह कई साल पहले भी ये खर्च इतना ही बड़ा नजर आता था. मतलब ये कि भई या तो फिल्म ही देख लो या अच्छा खाना खा लो. हम बात कर रहे हैं साल 1985 की. इस साल अमिताभ बच्चन की मर्द, राम तेरी गंगा मैली, प्यार झुकता नहीं, अर्जुन, संजोग, गिरफ्तार जैसी हिट फिल्में आई थीं.
ये फिल्में उस साल की तगड़ी कमाई करने वाली फिल्में थीं. अब इनकी टिकट की कीमत सुनिए. उस वक्त एक फिल्म की टिकट की कीमत 4 से 5 रुपये की बीच हुआ करती थी. धीरे-धीरे रेट कम भी होते होंगे जैसे आज होते हैं लेकिन एक स्टैंडर्ड रेट यही हुआ करता था. फिल्म देखना भी किसी लग्जरी से कम नहीं होता था. अब इतने पैसे खर्च हो गए तो बाहर खाने की तो सोचिए मत.
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि उस समय जब फिल्म की टिकट 4 रुपये की हुआ करती थी तब शाही पनीर 8 रुपये प्लेट मिला करता था. यानी कि आप दो फिल्म की टिकट के पैसे में एक शाही पनीर खा सकते थे. अब फैसला आपके हाथ में आ गया कि या तो फिल्म देख लीजिए या शाही पनीर ही खा लीजिए.