मेजर फिल्म के साथ पैन इंडिया पहचान बनाने वाले साउथ स्टार अदीवी सेष एक बार फिर दर्शकों के सामने कुछ हटकर फिल्म लेकर आ रहे हैं. उनकी आने वाली फिल्म है 'हिट: द सेकंड केस.' फिल्म में वह पुलिस अफसर के किरदार में हैं और एक सीरियल किलर को धरने की कोशिश में नजर आ रहे हैं. लेकिन फिल्म के साथ एक ऐसा इत्तेफाक हुआ है जिससे खुद फिल्म की टीम भी हैरान है. फिल्म की कहानी और हाल ही में दिल्ली में श्रद्धा वालकर हत्याकांड में कई समानताएं हैं. हालांकि फिल्म पर साल भर पहले से काम चल रहा है. 'हिट 2' को शैलेष कोलानू ने डायरेक्ट किया है. फिल्म 2 दिसंबर को रिलीज होने जा रही है.खुद अदीवी सेष भी इससे हैरान हैं. पेश है एनडीटीवी से हुई उनकी खास बातचीत के प्रमुख अंश...
मेजर का संदीप का किरदार और 'हिट: द सेकंड केस' के केडी किरदार में किस तरह का अंतर है?
यह किरदार मेजर से काफी अलग है. यह किरदार एक छोटे से शहर में लेजी सा पुलिस अफसर है. एक लेजी ऑफिसर की जिंदगी में एक क्रेजी केस आता है. वह किस तरह इस केस सॉल्व करता है, इसी को लेकर फिल्म की कहानी है.
केडी के किरदार में क्या खासियत है.
वह बहुत ही फ्री किस्म का बंदा है. यह बहुत ही मुखर कैरेक्टर है. जब गुस्सा करता है तो गालियों की बौछार करता है, प्यार करता है तो दिल से करता है. एकदम दिलदार किस्म का कैरेक्टर है.
'हिट: द सेकंड केस' में किस तरह के सीरियल किलर को पकड़ रहे हैं?
दिल्ली में हाल ही में हमने जो अभी क्राइम देखा है, फिल्म हो रहे क्राइम में उससे कई समानताएं हैं. इत्तेफाक यह कि हमारी फिल्म में भी कैरेक्टर का नाम श्रद्धा है. इस बात से हम काफी हैरान हो गए थे. हम उस समय डबिंग स्टूडियों में तब हमने पहली बार इस दिल्ली मर्डर केस के बारे में पहली बार सुना. अकसर कहा जाता है कि फिल्म की वजह से समाज में ऐसा होता है और कोई कहता है कि समाज में जो होता है वह फिल्म में आता है. लेकिन यह यूनिक सिचुएशन है जहां दोनों चीजें एक साथ हुई हैं.
फिल्म की कहानी में क्या दिखाने की कोशिश की गई है?
यह फिल्म महिलाओं से काफी गहरे से जुड़ी हुई है. इसमें सीरियल किलर महिलाओं की हत्या कर रहा है और वह भी अनोखे ढंग में. हमारी फिल्म का लक्ष्य बुराई पर अच्छाई की जीत को ही दिखाना है.
आप राइटर, डायरेक्टर और एक्टर हैं. कौन-सी भूमिका सबसे ज्यादा पसंद है?
हम तो हमेशा से एक्टर ही थे. कहानियां लिखना भी मजबूरी थी क्योंकि हम बिना फिल्मी बैकग्राउंड के आए थे. हमें कोई सिलेक्ट नहीं कर रहा था. हमारी लिए एक मजबूरी थी कि हमने अपने आप के लिए एक अच्छी सी कहानी लिख दी. मैं खुद को बहुत अच्छा डायरेक्टर नहीं मानता लेकिन एक्टिंग हमेशा से मेरा पैशन रहा है.
आज फिल्मों की कोई भाषा या सीमा नहीं रही है, साउथ-हिंदी का अंदर खत्म हो गया है. इस बारे में क्या कहना है आपका?
2016-17 तक यही होता था कि तेलुगू फिल्म तेलुगू होती है और हिंदी फिल्म हिंदी. लेकिन आजकल सिर्फ इंडियन फिल्म होती है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर कोई किसी की भी फिल्म देखने के लिए तैयार है. बस एक अच्छी सी कहानी बनाओ और उसे हर भाषा में प्रेजेंट करो. यही होना चाहिए.