Aankhon Ki Gustaakhiyan Review: जानें कैसी है विक्रांत मैसी और शनाया कपूर की ‘आंखों की गुस्ताखियां’, पढ़ें रिव्यू

Aankhon Ki Gustaakhiyan Review In Hindi: 11 जुलाई को सिनेमाघरों में विक्रांत मैसी और शनाया कपूर की फिल्म आंखों की गुस्ताखियां रिलीज हो गई है. पढ़ें फिल्म का रिव्यू हिंदी में...

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Aankhon Ki Gustaakhiyan Review आंखों की गुस्ताखियां का रिव्यू हिंदी में
नई दिल्ली:

कास्ट – विक्रांत मैसी, शनाया कपूर
लेखक –मानसी बागला 
निर्देशक – संतोष सिंह
सिनेमेटोग्राफी- तनवीर मीर 

‘आंखों की गुस्ताखियां' की कहानी जहान नाम के एक म्यूज़िशियन की है जो नेत्रहीन है. सबा एक थिएटर कलाकार है, जिसे अपनी पहली फिल्म में एक नेत्रहीन व्यक्ति का किरदार निभाने का मौका मिला है. किरदार को गहराई से समझने के लिए वह अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेती है ताकि एक नेत्रहीन व्यक्ति के अनुभव को महसूस कर सके.

सबा को मसूरी जाना होता है और जहान भी वहीं जा रहा होता है, क्योंकि वह वादियों में बैठकर एक नया गीत रचना चाहता है. दोनों की मुलाकात ट्रेन में होती है और यात्रा के दौरान उनके बीच धीरे-धीरे प्यार पनपता है. लेकिन फिर एक मोड़ पर जहान सबा को बिना कुछ कहे छोड़कर चला जाता है. आगे कहानी किस दिशा में जाती है? इनके रिश्ते का क्या होता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी. यह फिल्म रस्किन बॉन्ड की एक छोटी सी कहानी ‘द आईज हैव इट ' (The Eyes Have It) पर आधारित है.


खामियां

फिल्म दर्शकों के मन को नहीं छूती और उनसे भावनात्मक जुड़ाव बनाने में विफल रहती है.

पूरी फिल्म में संवाद अत्यधिक हैं यानी बातचीत बहुत ज़्यादा है (verbose), जो शांत पल और खामोश दृश्य भावनाएं जगाने में असरदार हो सकते थे, वे लगभग नदारद हैं. 

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मध्यांतर के बाद फिल्म की लेखनी कमजोर हो जाती है और संवाद प्रभावशाली नहीं लगते.

कई दृश्यों की लंबाई फिल्म को थका देने वाली और भारी बना देती है.

फिल्म को काव्यात्मक बनाने का प्रयास किया गया है, पर जिन दृश्यों को गढ़ा गया है, उनमें वह गहराई नहीं आ पाई.

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विक्रांत मैसी अच्छे अभिनेता हैं, लेकिन कुछ दृश्यों में वह नेत्रहीन व्यक्ति के रूप में विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते.

निर्देशक संतोष सिंह ने इस तरह की संवेदनशील कहानी को पर्दे पर उतारने का साहस दिखाया है, लेकिन निर्देशन में परिपक्वता की कमी महसूस होती है.

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खूबियां

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी सुंदर और प्रभावशाली है। जो थोड़ी-बहुत काव्यात्मक अनुभूति महसूस होती है, वह केवल इसके दृश्यों के कारण संभव हो पाती है.

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शनाया कपूर की यह पहली फिल्म है और उन्होंने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है. उन्हें अपने अभिनय कौशल को और तराशने की ज़रूरत है.

फिल्म के पहले भाग में कुछ संवाद अच्छे और प्रभावशाली हैं.

संगीत की बात करें तो गाने मधुर (melodious) हैं, लेकिन थिएटर से बाहर निकलने के बाद कोई भी गीत याद नहीं रहता.

फिर भी जो लोग रोमांटिक फ़िल्में देखना पसंद करते हैं वो खुद फैसला लें .

स्टार- 1.5

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