एक शिक्षक, जिन्होंने 33 साल की उम्र में किया डेब्यू, बने सुपरस्टार तो बेटे को समझा दोस्त, दी सामने शराब-स्मोक करने की सलाह

1 मई 1913 में जन्मे एक्टर बलराज साहनी ने बेटे को उनके दोस्त जैसा समझा. वहीं उनसे कह दिया किया, मुझे अपना पिता मत समझना, मैं तेरा दोस्त हूं.

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बलराज साहनी ने बेटे को दी थी ये सलाह
नई दिल्ली:

‘ऐ मेरी जोहरा जबीं...'ये एवरग्रीन गाना कभी पुराना नहीं होगा. मन्ना डे की आवाज में सजे इस गाने को मंझे हुए कलाकार बलराज साहनी पर फिल्माया गया था. खैर! ये तो थी एक गाने की बात, मगर अपने अभिनय से फिल्मों में जान डालने वाले बलराज साहनी के बारे में आप कितना जानते हैं, जिनके अभिनय और बोलने के अंदाज को इतना पसंद करते हैं, उनका असली नाम क्या है? 1 मई को उनकी जयंती है. तो आइए उनकी जिंदगी की किताब के पन्नों को पलटते हैं और जानते हैं यहां...  

बलराज साहनी का असली नाम युधिष्ठिर साहनी था. 1 मई 1913 को रावलपिंडी में उनका जन्म हुआ था. साहनी के पिता हिंदू सुधारवादी आंदोलन से संबंधित आर्य समाज संगठन से जुड़े थे. साहनी काफी कम उम्र से ही अभिनय की ओर आकर्षित हो गए थे. अभिनय के इस शौक ने उन्हें इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएट में दाखिला करवा दिया. उन्होंने 1946 में रिलीज हुई फिल्म ‘इंसाफ' से डेब्यू किया था. इस वक्त सुपरस्टार की उम्र 33 साल की थी. इस फिल्म के बाद वह कई फिल्मों में नजर आए. हालांकि, साहनी को पहचान साल 1953 में आई बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन' से मिली. इस फिल्म ने उन्हें बेहतरीन और मंझे हुए कलाकार की लिस्ट में शामिल कर दिया. फिल्म के लिए उन्हें कान्स फिल्म फेस्टिवल में नवाजा गया था.

दिवंगत अभिनेता बलराज साहनी के बेटे और अभिनेता परीक्षत साहनी ने अपनी किताब ‘द नॉन-कॉन्फॉर्मिस्ट: मेमोरीज ऑफ माई फादर' में अपने पिता के बारे में कई खुलासे किए हैं. परीक्षत ने बताया, “मेरी मां दमयंती साहनी भी एक अभिनेत्री थीं और 1930 के दशक के अंत में मां और पिताजी एक शिक्षक के रूप में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में चले गए थे.”

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एक इंटरव्यू के दौरान परीक्षत साहनी ने बताया था कि उनके पिता खुले हुए इंसान थे और उनके साथ रिश्ता दोस्तों जैसा था. उन्होंने शुरू में ही उनसे कह दिया था कि मुझे अपना पिता मत समझना, मैं तेरा दोस्त हूं. यहां तक कि वो यह भी कहते थे कि मेरे पीछे सिगरेट क्यों पीते हो, मेरे सामने पियो और हां मुझसे कभी कोई बात मत छुपाना, एक दोस्त की तरह खुलकर बात करना. परीक्षत ने बताया कि पहली बार वह सिगरेट और शराब अपने पिताजी के सामने ही पीए थे.

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साहनी के किस्सों पर नजर डालें तो वह मार्क्सवादी थे और इस विचारधारा की वजह से उन्होंने कहा था कि “जब मेरी मौत होगी और मेरी अंतिम यात्रा निकलेगी तो मेरे शरीर पर लाल रंग का झंडा डाल देना.” अभिनेता को ‘धरती के लाल', ‘दो बीघा जमीन', ‘छोटी बहन', ‘काबुलीवाला', ‘वक्त' और ‘गर्म हवा' जैसी फिल्मों में काम के लिए जाना जाता है. 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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