एक थप्पड़ ने बर्बाद किया करियर, पति ने की सगी बहन से शादी, 3 दिन बाद पता चली मरने की खबर

18 अप्रैल 1916 को नासिक में जन्मीं ललिता का असली नाम अंबा लक्ष्मण राव सगुन था. उनके पिता लक्ष्मण राव सगुन रेशम और कपास के व्यापारी थे.

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एक थप्पड़ ने बर्बाद किया इस एक्ट्रेस करियर
नई दिल्ली:

भारतीय सिनेमा के इतिहास में ललिता पवार का नाम ऐसी अभिनेत्री के रूप में दर्ज है, जिन्होंने अपनी मेहनत, दृढ़ता और अदाकारी से एक अमिट छाप छोड़ी. अपने लंबे करियर में उन्होंने हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं की 700 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया.

बचपन और अभिनय की शुरुआत

18 अप्रैल 1916 को नासिक में जन्मीं ललिता का असली नाम अंबा लक्ष्मण राव सगुन था. उनके पिता लक्ष्मण राव सगुन रेशम और कपास के व्यापारी थे. बचपन से ही उन्हें नाटक और अभिनय का शौक था. एक दिन संयोग से वह एक फिल्म स्टूडियो पहुंचीं, जहाँ एक निर्देशक उनकी सहजता और चेहरे के भावों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें फिल्म में काम करने का मौका दे दिया. सिर्फ 9 साल की उम्र में ललिता ने अपने करियर की शुरुआत ‘राजा हरिश्चंद्र' से की—जो हिंदी सिनेमा की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म थी. इस फिल्म ने न सिर्फ उनके करियर की शुरुआत की, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में भी उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया.

वो हादसा जिसने सब कुछ बदल दिया

कई सफल फिल्मों के बाद, 1942 में जंग-ए-आज़ादी की शूटिंग के दौरान उनके जीवन में एक दर्दनाक मोड़ आया. इस फिल्म में अभिनेता भगवान दादा को एक दृश्य में ललिता को थप्पड़ मारना था, लेकिन थप्पड़ इतना ज़ोरदार लगा कि उनके बाएं कान से खून निकल आया.गलत इलाज के चलते चेहरा पैरालाइज हो गया और उनकी बाईं आंख डैमेज हो गई.

ललिता ने एक इंटरव्यू में कहा था:

“जंग-ए-आज़ादी की शूटिंग के दौरान एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसे ने मेरा करियर बदल दिया. थप्पड़ इतना ज़ोर से पड़ा कि चेहरा पैरालाइज हो गया और मेरी बाईं आंख हमेशा के लिए बिगड़ गई.”

यह हादसा उनके लिए निर्णायक साबित हुआ. नायिका के रूप में करियर समाप्त हो गया, लेकिन हार मानने की बजाय उन्होंने चरित्र भूमिकाओं का रास्ता चुना. उन्होंने हर किरदार को इतनी गहराई से निभाया कि दर्शकों के दिलों में बस गईं.
रामानंद सागर के ‘रामायण' में मंथरा की भूमिका हो या फिल्मों में सख्त सास और दृढ़ नारी के किरदार—ललिता पवार ने हर रूप में अपनी पहचान बनाई.

पर्सनल लाइफ का दर्द

पेशेवर जीवन की तरह उनका निजी जीवन भी संघर्षों से अछूता नहीं रहा. उनकी पहली शादी गणपतराव पवार से हुई थी, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनके पति का उनकी ही बहन के साथ संबंध है, तो यह उनके लिए गहरा सदमा पहुंचा . उन्होंने इस विश्वासघात को बड़ी गरिमा के साथ स्वीकार किया और पति को तलाक दे दिया, ताकि वह उनकी बहन से विवाह कर सके. वर्षों बाद, निर्माता राज कुमार गुप्ता उनके जीवन में आए. दोनों ने विवाह किया और उनका एक बेटा हुआ—जय पवार. यह रिश्ता उनके जीवन में फिर से स्नेह और स्थिरता लेकर आया.

एक गौरवशाली जीवन का अकेला अंत

ललिता पवार ने अपने जीवन में हर संघर्ष को हिम्मत से झेला. उम्र बढ़ने के बाद भी उन्होंने फिल्मों और टीवी में काम जारी रखा और दर्शकों का प्यार पाया. लेकिन उनके अंतिम दिन बेहद अकेले रहे. 24 फरवरी 1998 को, 81 वर्ष की आयु में, कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उनका निधन हो गया. दुख की बात यह थी कि उनका निधन तीन दिन बाद पता चला. उनका बेटा जय, जब लगातार तीन दिनों तक उनसे संपर्क नहीं कर सका, तो उसने पड़ोसियों से मदद मांगी. दरवाज़ा खुलवाने पर पता चला कि ललिता अब इस दुनिया में नहीं रहीं.
 

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