1947 भारत के इतिहास में एक अहम साल रहा है. इसी साल भारत को आजादी मिली थी और इसी साल भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना. बेशक यह साल बहुत हलचलों भरा था. लेकिन फिल्म प्रेमियों के मन में हमेशा यह सवाल उठता होगा कि 1947 में जब देश में इतनी उथलपुथल चल रही थी. उस दौर में किस तरह की फिल्में रिलीज हो रही थीं और दर्शकों का प्यार किन फिल्मों को मिला. यही नहीं, वह कौन से सितारे थे जिन्होंने अपने हुनर से दर्शकों का ध्यान खींचा था. हम आपको 1947 की उन 5 टॉप फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनको दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में आज भी याद की जाती हैं. यही नहीं, फिल्मी इतिहास और मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां से जुड़ी कुछ अहम जानकारी भी आपको मिलेगी.
1. दो भाई (Do Bhai)
इस फिल्म को मुंशी दिल ने डायरेक्ट किया था. फिल्म में उल्हास, कामिनी कौशल, दीपक मुखर्जी, तिवारी, राजन हकसर और पारो देवी लीड रोल में नजर आए. बताया जाता है कि यह 1947 की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल थी.
2. जुगनू (Jugnu)
इस रोमांटिक कॉमेडी को शौकत हुसैन रिजवी ने डायरेक्ट किया था. फिल्म में दिलीप कुमार और नूरजहां लीड रोल में थे. फिल्म का संगीत फिरोज निजामी ने दिया था. इसकी संगीत बहुत पसंद किया गया था और दर्शकों ने इस फिल्म को अथाह प्यार दिया.
3. दर्द (Dard)
इस मेलोड्रामा फिल्म को अब्दुल राशिद करदर ने डायरेक्ट किया था. फिल्म में सुरैया, श्याम और मुनव्वर सुल्तान नजर आए. फिल्म में दिया गया नौशाद अली का संगीत तो खूब लोकप्रिय सिद्ध हुआ. फिल्म के गाने 'अफसाना लिख रही हूं' और 'हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे' गीत तो बेहद पॉपुलर हुए.
4. शहनाई (Shehnai)
इस फिल्म को पी.एल. संतोषी ने डायरेक्ट किया था. इसमें किशोर कुमार, इंदुमती, राधाकृष्णन, वी.एच. देसाई और रेहानी लीड रोल में थे. यह फिल्म भी उस साल की सबसे ज्यादा लोकप्रिय फिल्मों की फेहरिस्त में शुमार है. फिल्म का गीत 'आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे' खूब पॉपुलर हुआ था. फिल्म का म्यूजिक सी.रामचंद्र का था. इस गाने को मीना कपूर के साथ सी. रामचंद्र ने गाया था.
5. मिर्जा साहिबां (Mirza Sahiban)
1947 की लोकप्रिय फिल्मों में नूरजहां और त्रिलोक कपूर की 'मिर्जा साहिबां' का नाम भी आता है. फिल्म के के. अमरनाथ ने गाया था.त्रिलोक कपूर पृथ्वीराज कपूर के भाई थे और यह फिल्म नूर जहां की आखिरी फिल्म थी क्योंकि बंटवारे के बाद उन्होंने पाकिस्तान में रहने का फैसला किया था.