वोटर लिस्ट बवाल: साल 2005, जब बिहार में वोटर बढ़ने के बजाय घटे और खत्म हो गया लालू राज

Voter List Revision in Bihar: बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की जांच का काम चल रहा है. विपक्ष इसे वोटबंदी का नाम दे रहा है. हालांकि चुनाव आयोग इसे जरूरी कदम बता रहा है. NDTV Data Story में आज पढ़िए उस चुनाव की कहानी, जब बिहार में वोटर बढ़ने के बजाए घटे और राज्य से लालू का राज खत्म हो गया.

वोटर लिस्ट बवाल: साल 2005, जब बिहार में वोटर बढ़ने के बजाय घटे और खत्म हो गया लालू राज
बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सियासी बवाल मचा है.

Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हो रहे वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सियासी बवाल मचा है. चुनाव आयोग 25 जून से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का अभियान चला रहा है. बिहार के 7 करोड़ 89 लाख मतदाताओं को चुनाव आयोग की तरफ से बांटे गए फॉर्म को भरके जमा करना है. साथ ही अपने निवास का प्रमाण और जन्म की तारीख संबंधित दस्तावेज देना है. अब तक 5 करोड़ 87 लाख मतदाता यानि कि तीन चौथाई अपना फॉर्म जमा कर चुके हैं. विपक्ष चुनाव आयोग के इस अभियान का जमकर विरोध कर रहा है. सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इसकी लड़ाई लड़ी जा रही है.

क्या है विपक्ष की आशंका?

विपक्ष का कहना है कि चुनाव से चंद महीने पहले अचानक इसका ऐलान क्यों हुआ? क्या इतने कम समय में इसे करना संभव है? विपक्ष को डर है कि बड़ी संख्या में लोग जरूरी कागज उपलब्ध करा नहीं पाएंगे. इसके चलते बहुत बड़ी संख्या में लोगों का नाम मतदाता सूची से नाम कट जाएगा. विपक्ष इसे वोटबंदी का नाम दे रहा है. हालांकि चुनाव आयोग इसे जरूरी कदम बता रहा है. बीजेपी ने भी विपक्ष पर हार के डर से इस फैसले का विरोध करने का आरोप लगाया है.

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क्या घट सकती है मतदाताओं की संख्या?

ऐसा माना जा रहा है कि जो मतदाता जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाएंगे उनके नाम कट सकते हैं. नाम कटने वालों की संख्या कितनी होगी ये बता पाना मुश्किल है. 

अक्टूबर 2005 बिहार विधानसभा चुनाव में कम हो गए थे 2.5% मतदाता 

एक चुनाव से दूसरे चुनाव के बीच में मतदाताओं की संख्या बढ़ती है. पर बिहार में एक चुनाव ऐसा भी है जब मतदाता बढ़ने के बजाय घट गए. यह कहानी है साल 2005 की. इस साल बिहार में दो चुनाव हुए. फरवरी 2005 में त्रिशंकु विधानसभा बनी. राष्ट्रपति शासन लगा.  अक्टूबर 2005 में फिर से चुनाव हुए. लेकिन 8 महीने बाद हुए चुनाव में मतदाता बढ़ने के बजाय 2.5 फीसदी घट गए. 

2005 में क्यों कम हुई थी मतदाताओं की संख्या?

अक्टूबर चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन था. के जे राव को इलेक्शन कमीशन ने बिहार का पर्यवेक्षक बनाया. चुनाव आयोग पूरी तरह से साफ सुथरे चुनाव को लेकर एक्शन में था. इसकी शुरुआत सबसे पहले मतदाता सूची को अपडेट करने और समीक्षा करके इसकी कमियों को दूर करने से हुई.

तब 18 साल से ऊपर की आबादी और मतदाताओं की संख्या का जिला, प्रखंड और गांव स्तर पर मिलान हुआ. जहां संदेह हुआ वहां जरूरी कदम उठाए गए.

फोटो मैचिंग सॉफ्टवेयर से हटाए गए वोटर

एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बनाया गया. इसकी मदद से जांच के लिए ऐसे घरों को चिन्हित किया गया जिनमें 10-15 से अधिक मतदाता थे. मर चुके मतदाताओं और पलायन कर चुके मतदाताओं का नाम काटा गया. फोटो मैचिंग सॉफ्टवेयर की मदद से डुप्लीकेट मतदाताओं का आंकड़ा इकट्ठा किया गया. 

गहन जांच के बाद 18 लाख 31 हजार मतदाताओं का नाम काटा गया. 4 लाख 83 हजार नए मतदाताओं का नाम सूची में जोड़ा गया. मतदाता घटे तो परिणाम पर क्या हुआ असर इस आंकड़ों के जरिए समझने को कोशिश करते हैं. 

फरवरी 2005 में कुल मतदाता थे 5,26,87,663. अक्टूबर 2005 में ये संख्या घट कर रह गई 5,13,85,891. यानि कि 13 लाख से अधिक संख्या में मतदाता कम हो गए. यानि कि 2.5 फीसदी की कमी.

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फरवरी 2005 बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम

यूपीए के तीनों घटक दल राजद, कांग्रेस और लोजपा अलग-अलग लड़े. परिणाम त्रिशंकु विधानसभा के रूप में आया.  किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. 92 सीटों के साथ जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं. लालू यादव का 15 सालों राज खत्म हो गया. कोई सरकार नहीं बन पाई. बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.

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8 महीने बाद अक्टूबर-नवंबर 2005 बिहार विधानसभा में बदल गया बिहार

8 महीने बाद हुए चुनाव में मतदाता 2.5 फीसदी कम हो गए. जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को 143 सीटों के रूप में स्पष्ट बहुमत मिला. राजद-कांग्रेस गठबंधन की करारी हार हुई. इसी के साथ बिहार में 15 साल से चल रही लालू परिवार की सत्ता की भी समाप्ति हो गई.  
 

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अब इस साल फिर विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन का काम चल रहा है. चुनाव आयोग का कहना है कि इससे फर्जी वोटरों का नाम हटेगा. लेकिन विपक्षी दलों का कहना है कि इसके लिए बहुत कम समय दिया गया. अब देखना होगा कि चुनाव आयोग के इस अभियान का बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों पर क्या असर पड़ता है?

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