क्या जर्मनी और दक्षिण कोरिया की तरह भारत Coronavirus को रोकने में कामयाब हो पायेगा? कितना तैयार है भारत?

क्या कोरोना से लड़ने के लिए हम तैयार हैं. सरकार कह रही है कि तैयार हैं लेकिन सवाल यह है कि जब विकसित देश नहीं लड़ पा रहे हैं तो क्या भारत लड़ पाएगा?

क्या जर्मनी और दक्षिण कोरिया की तरह भारत Coronavirus को रोकने में कामयाब हो पायेगा? कितना तैयार है भारत?

क्या कोरोना से लड़ने के लिए हम तैयार हैं. सरकार कह रही है कि तैयार हैं लेकिन सवाल यह है कि जब विकसित देश नहीं लड़ पा रहे हैं तो क्या भारत लड़ पाएगा? अभी हमारे सामने कम केस है इसलिए भारत के लोगों के लिए दिक्कतें नहीं हो रही हैं, जिन लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है उनको आराम से अस्पताल में बेड मिल जा रहा है. महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि 7000 से भी ज्यादा बेड तैयार कर दिए गए हैं. महाराष्ट्र की जनसंख्या 12 करोड़ से भी ज्यादा है. मान लें कि महाराष्ट्र में 0.2 प्रतिशत लोग कोरोना से संक्रमित होते हैं तो फिर महाराष्ट्र में अकेले 240000 लोग इस वायरस से शिकार हो सकते हैं. 240000 में से अगर सिर्फ दस प्रतिशत लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तो 24000 लोगों को अस्पताल में बेड चाहिए होगा तो उस स्थिति में क्या होगा. यह प्रतिशत बहुत कम है. आगे-पीछे भी हो सकता है. अगर आप इटली और स्पेन के आकंड़े देखेंगे तो डर जाएंगे. 

इटली में एक लाख में से करीब 78 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं. स्पेन में एक लाख में से 46 लोग इस वायरस की चपेट में आए हैं. इटली और स्पेन के साथ भारत की तुलना नहीं करनी चाहिए, वरना जो आंकड़े सामने आएंगे वो भयावह होगा. फिर भी भारत को हर स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है. इटली और स्पेन भी कभी उम्मीद नहीं कर रहे थे कि इतने सारे लोग संक्रमित हो जाएंगे. एक दिन किमें यानी 20 मार्च को इटली में 627 लोगों की मौत हुई है जबकि 5986 नए केस सामने आए. इटली की जनसंख्या कुल करीब 6 करोड़ है जो भारत के मुकाबले करीब 21 गुना कम. अगर इटली की तरह भारत इस वायरस से संक्रमित होता है तो कितने लोग संक्रमित होंगे उसका अंदाज़ आप खुद लगा सकते हैं. इटली में हेल्थ वर्कर्स भी कोरोना वायरस का शिकार हो रहे हैं. 17 मार्च तक इटली में 2629 हेल्थ वर्कर्स संक्रमित हुए थे और यह यह आंकड़े चीन से दोगुना है. 

इटली के Lombardy इलाके में इस वायरस ने सबसे ज्यादा कोहराम मचाया है. इस इलाके में 20 प्रतिशत फैमिली डॉक्टर वायरस से संक्रमित हुए हैं. कई डॉक्टरों की मौत भी हो चुकी है. इटली में जिन हेल्थ वर्कर के टेस्ट पॉजिटिव पाए जा रहे हैं उनके संपर्क में आएं दूसरे डॉक्टरों को भी 14 दिनों तक अलग रखा जा रहा है. वो डॉक्टर रोगियों की ट्रीटमेंट नहीं कर पा रहे हैं. इस स्थिति में रोगियों की संख्या तो बढ़ ही रही है साथ ही डॉक्टर्स की संख्या भी कम हो रही है. ऐसा भारत के साथ भी हो सकता है. भारत को तैयार रहने की जरूरत है. इटली की स्थिति काफी खराब है बावजूद इसके वह जबरदस्त तरीके से लड़ रहा है. इटली ने कई कदम उठाए हैं लेकिन अब तक यह वायरस कम होने की नाम नहीं ले रहा है. करीब दो हफ्ते हो गए हैं पूरी इटली लॉक डाउन है. पुलिस पेट्रोलिंग कर रही है. इसे बावजूद रोजाना नए मामले सामने आ रहे हैं. नार्थ इटली के बाद अब इटली सरकार को यह डर है कि साउथ इटली के लोग भी धीरे धीरे इस वायरस का शिकार होंगे. इटली सरकार यह उम्मीद कर रही थी कि लॉक डाउन के बाद संख्या कम होगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. सोचिए अगर लॉक डाउन नहीं हुआ होता तो इटली का क्या हाल होता ? 

इटली की आर्थिक स्थिति भी खराब होती जा रही है. इटली ने यूरोपियन यूनियन से मदद मांगी है लेकिन फिर भी अपने लोगों को आर्थिक मदद देने में पीछे नहीं हट रही है. लोगों को मदद करने के लिए इटली सरकार ने 25 मिलियन यूरो का बजट सैंक्शन किया है. इटली सरकार मजदूरों को मदद कर रही है. कोई भी इंडस्ट्री बंद न हो और लोगों की नौकरी न जाये उस दिशा में भी मदद कर रही है. इटली में जो टूर गाइड थे उनकी काम ठप हो गया है. इटली सरकार उन्हें मार्च महीने में 600 यूरो देने की घोषणा की है. इटली सरकार ने कहा है कि दो महीने तक किसी की भी नौकरी नहीं जाएगी. जिन लोगों को कम तन्ख्वाह मिल रही उन्हें इटली सरकार 100 यूरो की बोनस भी दे रही है. इटली में स्कूल सब बंद है. अब बच्चे सब घर में है. बच्चों की खयाल रखने के लिए इटली सरकार 600 यूरो की वाउचर भी दे रही है ताकि लोग आया को नियुक्ति कर सके. इटली में कई टैक्स और इंश्योरेंस पेमेंट भी माफ कर दिए गए हैं. अगर भारत ऐसी स्थिति आती है तो भारत सरकार को भी तैयार रहना चाहिए. 

अपने आप को सबसे शक्तिशाली देश कहने वाला अमेरिका इस वायरस के सामने बेबस नज़र आ रहा है. अमेरिका में 20 हज़ार के करीब लोग इस वायरस से शिकार हुए हैं और 280 के करीब लोगों की मौत हो गई है. न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के हिसाब से अमेरिका में वेंटिलेटर की कमी हो गई है. अमरीका और यूरोपियन कंपनी जो वेंटिलेटर बनाते थे वो भी हाथ खड़े कर दिए हैं, उनका कहना है कि इतनी जल्दी वो मांग पूरी नहीं कर सकते हैं. वेंटिलेटर इम्पोर्ट भी नहीं हो रहे हैं. एक्सपोर्ट करने वाले देश एक्सपोर्ट करना बंद कर चुके हैं. क्योंकि उन्हें भी वेंटिलेटर की जरूरत है. CNN के खबर के हिसाब से जनवरी के महीने में अमेरिका के इंटेकलिजेंस डिपार्टमेंट ने चीन के कोरोना वायरस को को लेकर सचेत कर दिया था लेकिन ट्रम्प सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगर उस समय कदम उठाये गए होते तो अब यह हाल नहीं होता। अमेरिका के सीनेट में एक ट्रिलियन रेस्क्यू प्लान को लेकर डिबेट चल रही है. 

कोरोना वायरस की कहर को रोकने के लिए जर्मनी और दक्षिण कोरिया ने बहुत शानदार काम किया हैं. यहां संक्रमित केस ज्यादा है लेकिन मृत्यदर बहुत कम है. जर्मनी में 20 हज़ार के करीब लोग इस वायरस से संक्रमित हुए हैं लेकिन वहां सिर्फ 70 के करीब लोगों की मौत हुई है जो बहुत कम है. जर्मनी में कुल मिलाकर जितने केस हैं लगभग उतनी केस ईरान में है. ईरान में कुल 19700 के केस सामने आए हैं लेकिन 1435 के करीब लोगों की मौत हो चुकी है. इसे अंदाज़ लगाया जा सकता है कि मृत्यदर रोकने के लिए जर्मनी कितना शानदार काम किया है. दक्षिण कोरिया में 8799 के करीब लोग संक्रमित हुए हैं अब तक सिर्फ 102 लोगों की मौत हुई है. 

जो कदम इन दोनों देशों ने उठाए हैं उनमें से एक है, ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट करवाना. कोरोना वायरस के टेस्ट करने के मामले जर्मनी सबसे आगे हैं. एक हफ्ते में जर्मनी 160000 से भी ज्यादा टेस्ट कराती है. इतने टेस्ट किसी भी यूरोपियन देश में नहीं हो रहे हैं. दक्षिण कोरिया भी हफ्ते में 110000 से भी ज्यादा टेस्ट करवा रही है इसे यह फायदा हुआ है कि वायरस के बारे में पहले पता चल जाता है. अगर लोगों के अंदर लक्षण नहीं है तब भी टेस्ट किया जा रहा है ताकि बीमारी के बारे में पहले पता चल जाये इलाज जल्दी शुरू हो जाए. जर्मनी में मृत्यदर कम होने की और एक वजह भी है. जर्मनी में ज्यादा से ज्यादा कम उम्र के लोग इस वायरस से संक्रमित हुए हैं. कुलमिलाकर जितने लोग संक्रमित हुए हैं उस में से 80 प्रतिशत की उम्र 60 साल से नीचे है. 

सरकार के साथ-साथ भारत के लोगों को भी कई कदम उठाने की जरूरत है. अगर इस वायरस को रोकना है तो भारत में जर्मनी की तरह ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करवाने की जरूरत है. जर्मनी की जनसंख्या में 8.5 करोड़ के करीब हैं और हफ्ते में 160000 से भी ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं तो आप अंदाजा लगाइए की भारत में 130 करोड़ लोग रहते हैं तो एक हफ्ते में कितने टेस्ट होना चाहिए. अगर जर्मनी के साथ तुलना की जाए तो भारत को हफ्ते में करीब 25 लाख लोगों की टेस्ट होनी चाहिए. भारत में इतने टेस्ट नहीं हो सकते क्योंकि हमारे पास इतनी लैब्स ही नहीं है लेकिन फिर भी ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करवाने की जरूरत है. 

भारत में 65 साल से ज्यादा उम्र लोगों को घर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं है. जो लोग पहले भी हाइपरटेंशन,मधुमेह जैसे बीमारी की शिकार हैं तो उन्हें कुछ महीने के लिए पूरी तरह बाहर जाना बंद कर देना चाहिए. लोगों से दूर रहना चाहिए. सरकार और डॉक्टर जो सलाह दे रहे हैं उसे पूरी तरह मानना चाहिए. गांव के लोगों को ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है. अब लोग शहर से गांव के तरफ लौटने लगे हैं ऐसे में सतर्कता बरतने की जरूरत है. अगर कोई लक्षण है तो अलग रहने की जरूरत है,जल्द से जल्द टेस्ट करवाना चाहिए. गांव में फैल जाने के बाद रोकना मुश्किल हो सकता है. अगर भारत में यह वायरस ज्यादा से ज्यादा लोगों को संक्रमित करता है तो कई लाख लोगों की नौकरी जाएगी,लोगों को बिना वेतन के काम करना पड़ेगा. मजदूरों को मजदूरी नहीं मिलेगी. ऐसे में दूसरे देशों की तरह भारत को भी ऐसे स्थिति से निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए, लोगों को आर्थिक मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए. 

सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं

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