राम मंदिर और जगन्नाथ की नई तिजोरी, दोनों के लिए आखिर क्यों चुनी गई ये लकड़ी?
Story created by Renu Chouhan
15/07/2024 46 साल बाद जगन्नाथ पुरी का रत्न भंडार खोला गया है, इससे पहले साल 1978 में इस खजाने को खोला गया था.
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सरकारी रिकॉर्ड को माने तो इस खजाने में 128 किलो सोना और 221 किलो चांदी के अलावा और भी बेशकीमती चीज़ें इसमें मौजूद हैं.
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इस खजाने को भरने के लिए 15 सागौन लकड़ी के बड़े संदूक बनाए गए हैं, जिसमें हर संदूक में पीतल की कोटिंग की गई है.
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हर संदूक का वज़न 2 क्विंटल है यानी 200 किलो और ये 3 फीट गहरा, 4.5 फीट लंबा और 2.5 फीट चौड़ा है. और इन्हें लाल और पीला पेंट किया गया है.
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आपको बता दें कि इसी सागौन की लकड़ी को अयोध्या में बने राम मंदिर के दरवाज़ों को बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लाया गया था.
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जी हां, अयोध्या के राम मंदिर में लगे 42 दरवाज़ों में भी सागौन की लड़की का ही इस्तेमाल किया गया था. इन्हीं में से 14 दरवाज़ों पर सोने की परत चढ़ाई गई है.
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चलिए आपको बताते हैं कि आखिर सागौन या सागवान की इस लकड़ी में ऐसा क्या खास होता है.
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सबसे पहले ये जानिए कि सबसे महंगी लकड़ियों में से एक होती है, जो 50 हज़ार से 1 लाख तक प्रति घन मीटर आती है.
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सागौन की लकड़ी मंहगी होने का कारण है कि ये कभी खराब नहीं होती न ही इसमें कभी दीमक लगती है.
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इस लकड़ी में कई औषधीय गुण भी होते हैं, क्योंकि इसमें ऐसा प्राकृतिक तेल पाया जाता है जिससे कई बीमारियों का इलाज किया जाता है.
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इतना ही नहीं सागौन की लकड़ी किसी भी मौसम में खराब नहीं होती. इसी के साथ इसका रखरखाव भी काफी आसान होता है.
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बता दें, जगन्नाथ मंदिर के खजाने के लिए भुवनेश्वर की सागौन लकड़ी का इस्तेमाल किया गया. वहीं, राम मंदिर में महाराष्ट्र की सागौन का इस्तेमाल किया गया है.
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