ये है दुनिया का सबसे बड़ा सुख
Story created by Renu Chouhan
2/09/2024
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इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो परेशान न हो जो दुखी न हो. हर किसी के पास परेशानी है दुख है.
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कोई इसीलिए परेशान है कि उनके पास किसी चीज़ की कमी है तो कोई इसीलिए परेशान है कि जो है उसकी कद्र नहीं.
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लेकिन हम सभी को खुश रहना चाहिए, क्योंकि खुशी सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि हमारे आस-पास के माहौल को भी अच्छा रखती है.
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ऐसा सिर्फ हम ही नहीं बल्कि चाणक्य ने अपनी नीति में कहा है.
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चाणक्य नीति में एक श्लोक है 'शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्। न तृष्णाया: परो व्याधिर्न च धर्मो दयापर:।।'.
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इस श्लोक का मतलब है कि शांति से बढ़कर कोई तप नहीं, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं. तृष्णा अथवा चाह से बढ़कर कोई रोग नहीं, दयालुता से बढ़कर कोई धर्म नहीं.
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इसे और आसान भाषा में समझे तो शांत रहने के लिए व्यक्ति को अपनी कामनाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है इसीलिए यह तप है.
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जो व्यक्ति हर समय भागता-दौड़ता रहता है, और की कामना करता रहता है, उसे सुख नहीं मिल सकता.
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मनुष्य की तृष्णा उस रोग की तरह है, जिसमें भूख कभी शांत नहीं होती. दया को आचार्य ने सर्वश्रेष्ठ धर्म माना है.
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दया का अर्थ है संवेदना का विकास, इसमें अन्य का भाव समाप्त हो जाता है.
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