चाणक्य ने समझाया किसे धन देना चाहिए और किसे नहीं

Story created by Renu Chouhan

06/08/2024

चाणक्य नीति में एक श्लोक है"
वित्तं देहि गुणान्वितेषु मतिमन्नान्यत्र देहि क्वचित्, प्राप्तं वारिनिधेर्जलं घनमुखे माधुर्ययुक्तं सदा। जीवान्स्थावरजङ्गमांश्च सकलान् संजीव्य भूमण्डलम्, भूयः पश्य तदेव कोटिगुणितं गच्छन्तमम्भोनिधिम्।।"

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इस श्लोक के जरिए चाणक्य ने बताया कि मनुष्य को किन लोगों को धन से सहायता करनी चाहिए और किसे नहीं देना चाहिए.

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चाणक्य ने कहा बुद्धिमान या अच्छे गुणों से युक्त मनुष्य को ही धन दो, गुणहीनों को धन मत दो.


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उन्होंने समझाया कि समुद्र का खारा पानी बादल के मीठे पानी से मिलकर मीठा हो जाता है और इस संसार में रहने वाले सभी जड़-चेतन, चर और अचर जीवों को जीवन देकर फिर समुद्र में मिल जाता है.

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यानी जिस तरह बारिश का पानी लोगों को जीवन देने के बाद फिर समुद्र में जा मिलता है और फिर वही समुद्र से करोड़ गुणा अधिक बादलों को पुन: प्राप्त हो जाता है.

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उसी तरह आसान भाषा में चाणक्य ने कहा कि गुणी व्यक्ति को दिया हुआ धन अनेक अच्छे कार्यों में लगता है.

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आगे उन्होंने यह भी कहा कि अगर धन अनेक दुगुर्णों से युक्त है, फिर भी गुणी व्यक्ति का साथ पाकर वह निर्दोष हो जाता है - जनोपयोगी हो जाता है.

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