Byline Renu Chouhan
                            
            
                            2/09/2024
                            
            
                            4 सालों तक जिसने संभाला मुगल साम्राज्य उसी को अकबर ने बड़ी चालाकी से फेंका बाहर, उसकी पत्नी से भी रचाई शादी
                            
          
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            अकबर काफी छोटा था जब उनके पिता हुमायूं की मुत्यु हो गई थी, ऐसे में अकबर के चाचा कामरान और बैरम खान ने उसे पाला पोसा. बैरम खान हुमायूं का बहुत प्रिय अधिकारी था, इसी ने अकबर के तख्त सभांलने तक मुगल सेना का नेतृत्व किया.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            यानी बैरम खान ने लगभग चार सालों तक मुगल साम्राज्य की बागडोर संभाली, इस दौरान उसने अमीरों पर पूरा नियंत्रण रखा.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            मुगल साम्राज्य का भी विस्तार किया, इस दौरान काबुल से जौनपुर और अजमेर तक मुगलों का राज था. लेकिन इस विस्तार के साथ उससे मुगल साम्राज्य के ही खास शक्तिशाली व्यक्ति नाराज़ थे, वजह थी पक्षपात.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            क्योंकि बैरम खान एक शिया मुसलमान था, इसीलिए वह सुन्नी मुसलमानों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं करता था.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            इसी वजह से यह कलह अकबर के कानों तक पहुंची, वह भी बड़ा हो चुका था और समझता था कि अंदर ही अदंर शिया-सु्न्नी जैसे मामलों पर कहल बढ़ती जा रही है.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            इसीलिए उसने महसूस किया कि अब साम्राज्य की बागडोर खुद संभालनी होगी, इसीलिए बैरम खान को सामने से न कहकर शिकार के बहाने आगरा से दिल्ली पहुंचा.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            वहां से अकबर ने फरमान जारी किया कि बैरम खान को उसके पद से हटाया जा रहा है और सभी अमीर उसकी अधीनता स्वीकार करें.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            बैरम खान भी समझ गया कि अकबर ने अब सारी शक्ति अपने हाथों में ले ली है, लेकिन उसे इस बात को स्वीकारने में 6 माह तक समय लगा. कई अंदरुनी विद्रोह भी हुए.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            और आखिरकार वह समर्पण करने पर मजबूर हो गया और अकबर ने उसे दरबार में सेवा करने या मक्का जाने का विकल्प दिया.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            ऐसे में बैरम खान ने मक्का जाने का फैसला किया. लेकिन अहमदाबाद के पाटन में एक अफगान ने उसे मार डाला.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            Image credit: Openart
                            
            
                            बैरम की युवा पत्नी और उसके छोटे बच्चे को अकबर के पास आगरा लाया गया, वहां अकबर ने उससे विवाह किया और उसके बच्चे को पाला.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            Image credit: Openart
                            
            
                            आगे चलकर यही बच्चा अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के नाम से मशहूर हुआ और उसने सम्राज्य में कई महत्वपूर्ण असैनिक और सैनिक पदों पर काम किया.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
            
                            और देखें
                            
            
                            
                            
            
                            भारत के इस गांव में जूते-चप्पल पहनना है Ban
                            
            
                            
                            
            
                            भारत का ये शहर इटली के वेनिस से भी है खूबसूरत
                            
            
                            
                            
            
                            क्यों आपको दूध और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए
                            
            
                            
                            
            
                            नारियल में पानी है या मलाई, इन 5 Trciks से करें पता
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            
                            
          
         
                                   
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