Story created by Renu Chouhan
दुश्मन से क्या ग्रहण कर लेना चाहिए?
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बात जब दुश्मन की हो तो, गुस्सा आना स्वाभाविक है.
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लेकिन चाणक्य ने दुश्मन से जुड़ी एक बात कही है, उन्होंने दुश्मन से कुछ सीखने को कहा है.
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चाणक्य नीति में एक वाक्य है "शत्रोरपि सुगुणो ग्राह्य:".
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चाणक्य ने इस वाक्य में बताया कि शत्रु में यदि अच्छे गुण दिखाई दें तो उन्हें ग्रहण कर लेना चाहिए.
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यानी इस वाक्य में चाणक्य का भाव शत्रु के रण-कौशल से है.
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रण-कौशल के संबंध में यदि शत्रु में कोई विशेष बात दिखाई दे तो ग्रहण कर लेनी चाहिए.
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इसी से जुड़ा चाणक्य ने एक और वाक्य लिखा "म्लेच्छानामपि सुवृत्तं ग्राह्मम्".
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इस वाक्य में चाणक्य ने बताया कि म्लेच्छ व्यक्ति की भी अच्छी बातों को अपना लेना चाहिए.
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म्लेच्छ व्यक्ति यानी कोई दुष्ट या अभद्र व्यक्ति...यदि यह कोई बात कहते हैं उससे लाभ उठाने की प्रवृत्ति होनी चाहिए.
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यानी दुष्ट लोगों की अच्छी बातों से सीख लेने में कोई हानि नहीं.
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