Story created by Renu Chouhan
 हंस शमशान में रहना पसंद नहीं करते, चाणक्य की इस बात का क्या है अर्थ?
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  चाणक्य नीति में एक वाक्य है "न हंसा, प्रेतवने रमन्ते".
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  इस वाक्य में चाणक्य ने बताया कि हंस नाम का पक्षी श्मशान में रहना पसंद नहीं करते.
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  आचार्य ने इस वाक्य का अर्थ अंच्छे इंसानों से जोड़कर समझाया.
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  दरअसल, उनके मुताबिक जिस प्रकार हंस श्मशान में नहीं रहते, उसी प्रकार योग्य व्यक्ति अयोग्य व्यक्ते के पास बैठना पसंद नहीं करते.
             
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  चाणक्य के मुताबिक गुणी व्यक्ति एकांत में अज्ञान जीवन बिता देना तो स्वीकार कर लेते हैं...
             
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  लेकिन बुरी संगति में रहना कभी स्वीकार नहीं करते.आचार्य ने इस वाक्य के जरिए अच्छे लोगों के बारे में बताया. 
             
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  वहीं, चाणक्य ने एक और वाक्य में गुणी लोगों के बारे में बताया "संतोसत्सु न रमंते".
             
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  इस वाक्य में उन्होंने कहा कि सज्जन लोग दुर्जनों में रहकर आनंद (चैन) अनुभव नहीं करते.
             
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  यानी उन्होंने बताया कि मनुष्य जैसे लोगों में रहता है उसका स्वभाव भी वैसा बन जाता है.
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