भारत की आज़ादी के 10 गुमनाम हीरो

Story created by Renu Chouhan

14/08/2024


भारत की आज़ादी के कुछ ही हीरो को हम सभी जानते हैं, लेकिन बहुत से ऐसे हीरो हैं जो इतिहास में कहीं खो गए. आज जानिए उनकी अनसुनी कहानी.

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कैप्टन राम सिंह ठाकुर-  नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अधीन आज़ाद हिंद फौज में कैप्टन राम सिंह शामिल हुए. 1945 में अंग्रेज़ी सेना ने रंगून पर हमला बोला, राम सिंह को कैद किया, लाल किला की जेल में बंद किया.

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एस आर शर्मा -  रेशम के व्यापारी एस आर शर्मा हिंदुस्तान सेवादल में शामिल हुए, और कई देशभक्ति के गीत लिखे. सेवादल में वो प्रचारक बने. वो गांधी जी से बहुत प्रभावित थे, फिर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में भाग लिया और सेवा जारी रखी.






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निकुंजा सेन -  हमचंद्र घोष (बरदा) के मुक्ति संघ के सदस्य बने. कलकत्ता की कई युवा क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए, उन्हें अंग्रेजों ने लंबी कारावास की सज़ा सुनाई.

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यूसुफ मेहर अली - भारत छोड़ो और साइमन गो बैक जैसे नारे देने वाले यूसुफ वकालत की पढ़ाई के दौरान ही आज़ादी की लड़ाई में कूद गए और 8 बार जेल गए. लेकिन 47 साल की उम्र में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया.

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उदय प्रसाद - कई जुलूस में शामिल हुए, जोशीले भाषण दिए, अंग्रेज़ों से बहुत प्रताड़ित हुए. वह दुर्ग लोकल बोर्ड के अध्यक्ष भी थे, उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

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हसरत मोहानी - आज़ादी की लड़ाई के चक्कर में कॉलेज से निकाले गए, जेल भी गए. 'उर्दू-ए-मुअल्ला' नाम की पत्रिका भी चलाते थे. साल 1921 में 'इंकलाब जिंदाबाद' नारा उन्होंने ही दिया.

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गंगू मेहतर - नाना साहेब पेशवा के बहादुर लड़ाकों में एक थे गंगूदीन. वह 1857 में हुई आज़ादी की पहली लड़ाई में अंग्रेज़ों के खिलाफ उतरे, अंग्रेज़ों ने उन्हें फांसी की सज़ा दी थी.

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मींधू कुम्हार - 18 वर्ष की उम्र में मींधू ने रूद्री नवागांव के जंगल सत्याग्रह में हिस्सा लिया, पुलिस ने धारा 144 लगाई. सत्याग्रहियों को घोड़े से कुचला, कपड़े उतरवा कर चाबुक से मारा.  गोली मारी और देश द्रोह की धारा लगाई.

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एनजी रंगा - आंध्र प्रदेश के एनजी को किसानों का मसीहा कहा जाता था. इंग्लैंड में पढ़ाई की, गांधी जी संग सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया. उस दौरान 8 बार लोकसभा के सदस्य भी चुने गए.

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खुदीराम बोस - छोटी उम्र में आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुए लेकिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही उन्हें सिर्फ 18 साल उम्र में फांसी के फंदे पर अंग्रेज़ों ने लटका दिया.

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