Story created by Renu Chouhan
ऐसे व्यक्ति का हर कोई करता है अपमान, घर-बाहर कहीं नहीं मिलता सम्मान
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चाणक्य नीति में एक वाक्य है 'अधनस्य बुद्धिर्न विध्यते', 'हितमप्यधनस्यवाक्यं न शृणोति.' और 'अधन: स्वभार्ययाप्यवमन्यते.
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इन वाक्यों में चाणक्य ने ऐसे व्यक्ति के बारे में बताया है जिनकी बुद्धि नष्ट हो जाती है.
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उन्होंने बताया कि धनहीन व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है. यानी संसार में निर्धनता से बढ़कर कोई अभिशाप नहीं.
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निर्धन व्यक्ति का अपने भाइयों, परिवारवालों और दोस्तों में भी अपमान होता है.
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क्योंकि धनहीन व्यक्ति अपमान में घबराकर ऐसे अनर्थ कार्य कर बैठता है जिसकी मनुष्य से आशा नहीं की जा सकती.
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निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता, बल्कि उसको मजाक में लेते हैं और हंसी उड़ाते हैं.
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यानी निर्धन व्यक्ति को कोई भी योग्य नहीं समझता. उसकी पत्नी भी उसका अपमान कर बैठती है.
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