Story created by Renu Chouhan
                            
            
                            कभी नहीं करनी चाहिए  इस 1 शख्स की बुराई
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
                            Image Credit: Openart
                            
            
                            
                            
            
                            चाणक्य ने अपनी नीति में कई ज्ञान की बाते कहीं हैं, जिनमें से एक ये है कि हमें किसकी बुराई कभी नहीं करनी चाहिए.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            जी हां, चाणक्य नीति में एक ऐसे शख्स के बारे में बताया गया है जिसकी बुराई करने वालों को चाणक्य ने मूर्ख कहा है.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            चाणक्य नीति में एक वाक्य है "न मीमांस्या गुरव:".
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            इसका अर्थ चाणक्य ने लिखा है कि गुरुजनों की आलोचना नहीं करनी चाहिए.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            मनुष्य को चाहिए कि अपने गुरु की कभी आलोचना न करे. गुरु शिष्य का सदैव हित चाहते हैं. 
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            गुरु कभी भी अपने शिष्यों का अहित नहीं चाहते और न ही करते हैं.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            इसीलिए यदि उनके हृदय की भावना को व्यक्ति न समझ सके तो भी उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
                            
                            
            
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                            आलोचना का अर्थ व्यक्ति के दोषों को ढूंढना है. और अपने गुरुजनों में दोष ढूंढना मनुष्य की मूर्खता है.
                            
          
         
                                   
                                         
      
      
      
      
      
      
         
         
            
         
         
         
            
                            
                            
            
            
                            और देखें
                            
            
                            
                            
            
                            हमें हिचकी क्यों आती है?
                            
            
                            
                            
            
                            1 लकड़ी का कटोरा और बूढ़ा आदमी
                            
            
                            
                            
            
                            घमंडी लाल गुलाब का फूल
                            
            
                            
                            
            
                            ज्यादा सोचने के क्या नुकसान होता है?
                            
          
         
                                   
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