Byline: Renu Chouhan

9/09/2024

ऐसे इंसानों को समझाना समय की बरबादी है

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चाणक्य नीति में एक श्लोक है "न दुर्जन: साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाण:। आमूलसिक्त: पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति।।"

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इस श्लोक में चाणक्य ने बहुत ही साफ शब्दों में बताया कि आखिर किस इंसान को समझाने का कोई फायदा नहीं.

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इस श्लोक में उन्होंने लिखा कि जिस प्रकार नीम के वृक्ष को दूध और घी से सींचने पर भी उसमें मिठास पैदा नहीं होती...

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उसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति अनेक प्रकार से समझाने-बुझाने पर भी सज्जन नहीं हो पाता.

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चाणक्य ने आगे लिखा कि जिस तरह कुछ शारीरिक क्रियाएं मनुष्य के नियंत्रण से बाहर होती हैं...

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इसी प्रकार लंबे अभ्यास के परिणाम स्वरूप पड़े संस्कारों के कारण कुछ मानसिक क्रियाएं भी मनुष्य के वश से बाहर हो जाती हैं, जिसे अवचेतन मन कहा जाता है.

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सज्जनता और दुष्टता का संबंध इसी मनोस्तर पर बैठे मनुष्य की क्रियाओं को नियंत्रित करने वाले संस्कारों से है.

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इसीलिए जब तक वहां परिवर्तन न हो, किसी के मूल स्वभाव को बदलना अत्यंत कठिन होता है.

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इसे अगर आसान भाषा में समझें तो जिस व्यक्ति में संस्कार होंगे वो सज्जन होगा और जिसमें संस्कार नहीं वो दुर्जन ही रहेगा.

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और दुर्जनों को बदलना आसान नहीं.

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