Story created by Renu Chouhan
'जैसा शरीर वैसा ज्ञान और फिर वैसा ही वैभव'
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चाणक्य ने अपनी नीति में कुछ वाक्यों के जरिए मनुष्य का ज्ञान और वैभव के बारे में बताया है.
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उन्होंने लिखा है "यथा शरीर तथाा ज्ञानम्" यानी शरीर जैसा होता है वैसा ही ज्ञान उसमें रहता है.
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चाणक्य के अनुसार बहुत से व्यक्तियों के शरीर को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे कितने बुद्धिमान हैं. लेकिन यह कोई मानदंड नहीं है.
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आगे चाणक्य ने लिखा "यथा बुद्धिस्तथा विभव:" यानी जैसी बुद्धि होती है वैसा ही वैभव होता है.
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यहां सत्, रज, तम तीनों गुणों की बात है, जो प्राणी जैसी बुद्धि का होता है, अपने वैभव के लिए वह वैसे ही सम्मान एकत्रित करता है.
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जैसे सत् बुद्धि के वैभव सात्विक होंगे, रज बुद्धि के राजसी और तामस बुद्धि के वैभव भी तामसी ही होंगे.
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इसीलिए जैसा वैभव चाहते हैं, अपनी बुद्धि को वैसे ही रखें और जैसी बुद्धि चाहते हैं अपना शरीर भी उसी प्रकार रखें.
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