Story created by Renu Chouhan

चाणक्य ने बताया कैसे व्यक्ति का हमेशा होता है गुणगान

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चाणक्य नीति में एक श्लोक है 'पर-प्रोक्तगुणो यस्तु निर्गुणोपि गुणी भवेत्। इंद्रोपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणै।।'.

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इस श्लोक में चाणक्य ने बताया कि जिस मनुष्य के गुणों की तारीफ दूसरे लोग करते हैं, वह गुणों से रहित होने पर भी गुणी मान लिया जाता है.

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लेकिन यदि इंद्र भी अपने मुख से अपनी प्रशंसा करे तो उन्हें छोटा ही माना जाएगा.


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यानी गुणी वह होता है जो अपने से ज्यादा गुणवान की ओर देखे. इसीलिए वह स्वयं को गुणरहित मानता है.


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जबकि गुणहीन व्यक्ति अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने मुंह मियां मिट्ठू बनता है.


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इसीलिए आप भी अपने जीवन में ऐसे मनुष्य बनें जिनकी तारीफ लोग करें.


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न कि खुद अपनी ही तारीफ अपने मुंह से करते चले जाएं.


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जब दूसरे तारीफ करते हैं तो सम्मान बढ़ता है.

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