Story created by Renu Chouhan
इस्लामी कैलेंडर में 31 दिन का महीना क्यों नहीं होता?
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सबसे पहले ये जानिए कि रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौंवा महीना होता है, जिसका काफी महत्व होता है.
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क्योंकि इस्लाम की पवित्र किताब कुरान में बताया गया है कि इसी नौंवे महीने में उनके पैगम्बर मुहम्मद आए थे.
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मान्यता है कि इसी महीने में पहली बार कुरान का अवतरण (मिलना या प्राप्त होना) हुआ था, इसीलिए भी इस्लाम में इस महीने का बहुत महत्व है.
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इसी वजह से इस पूरे महीने इस्लाम मानने वाले लोग कुरान का पाठ करते हैं, रोज़ा रखते हैं.
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इबादत के साथ-साथ समाज सेवा (गरीबों की मदद) करते हैं. सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ नहीं खाते.
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बता दें, इस्लामी कैलेंडर में ग्रेगोरियन कैलेंडर (जिसे हम फॉलो करते हैं) से 11 या 12 दिन कम होते हैं. क्योंकि ये चंद्र चक्र के हिसाब से चलता है.
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इस्लामी कैलेंडर का एक वर्ष 12 चंद्र महीनों का होता है और हर महीने की शुरुआत चांद दिखने से होती है.
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अब चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में लगभग 29.5 दिन लेता है, इसलिए इस्लामी महीने की अवधि 29 या 30 दिन की होती है.
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इसीलिए रमजान महीने की तारीख हर साल का बदलती रहती है. रमजान का महीना कभी 29 दिन का तो कभी 30 दिन का होता है.
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इसी वजह से इस्लामी महीने में 31 दिन नहीं होते, जो कि सोलर ग्रेगोरियन कैलेंडर में देखने को मिलते हैं.
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ठीक वैसे ही जैसे हिंदुओं के त्योहार भी ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से हर साल अलग तारीख पर पड़ते हैं.
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