Story created by Renu Chouhan

कैसे लोगों को होती है दूसरों से जलन?

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चाणक्य नीति में एक श्लोक है "दह्ममाना सुतीव्रेण नीचा परयशोग्निना। अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दा प्रकुर्वते।।".

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चाणक्य ने इस वाक्य में ऐसे लोगों के बारे में बताया है जो दूसरों से जलते हैं.

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इस वाक्य में उन्होंने लिखा है कि दूसरों से जलने वाला मनुष्य अन्‍य व्यक्ति के यश को बढ़ता हुआ देखकर उसकी यशरूपी कीर्ति से जलने लगता है...


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और जब वह उस पद को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं, तब दूसरे व्यक्ति की निंदा करने लगते हैं.


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चाणक्य ने आगे लिखा कि दुष्ट व्यक्ति दूसरे को तरक्की करता देखकर उससे जलने लगता है.


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ऐसे लोगों को सामने वाले की कीर्तिरूपी आग जलाती रहती है.


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जब वे उस कीर्ति को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं, तब दूसरे व्यक्ति की निंदा करने लगते हैं.


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इसीलिए हमेशा ध्यान रखें कि तरक्की अपने साथ निंदा करने वाले लोगों को लाती है.


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ऐसे लोगों पर ध्यान न दें और आगे बढ़ते रहें.

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