Story created by Renu Chouhan
चाणक्य ने बताया 5, 10 और 16 साल के बेटे से कैसे बात करनी चाहिए
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चाणक्य ने अपनी नीति में एक श्लोक लिखा है 'लालयेत् पच्च वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत्। प्राप्ते तु षोडुशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।'
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चाणक्य ने इस वाक्य में बेटों को किस उम्र में किस तरह बात करनी चाहिए, इसके बारे में बताया है.
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उनके मुताबिक 5 साल तक की उम्र तक बेटों से बहुत ही प्यार से बात करनी चाहिए. लाड़ और दुलार करना चाहिए.
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क्योंकि 5 साल तक की उम्र तक वह सहज विकास से गुजर रहा होता है.
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वहीं, उसके 10 साल के होने के बाद ताड़ना की जा सकती है और उसे दंड दिया जा सकता है.
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क्योंकि इस उम्र में वह बिगड़ न जाए, इसीलिए उसे डराया-धमकाया जा सकता है या फिर दंड देने की बात की जा सकती है.
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लेकिन 16 साल की उम्र के बाद उसका मित्र यानी दोस्त बन जाना चाहिए और वैसे ही व्यवहार करना चाहिए.
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क्योंकि इस उम्र में उसका व्यक्तित्व और सामाजिक 'अहं' विकसित हो रहा होता है. इस उम्र में दोस्त बनकर यह महसूस कराना चाहिए कि उसकी परिवार में महत्वपूर्ण भूमिका है.
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क्योंकि मित्र पर जैसे आप अपने विचारों को लादते नहीं है, वैसा ही आप यहां अपनी संतान के साथ भी करें.
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